लहसुन का उपयोग करें इन 20 तरीकों से मिलेंगे अचूक लाभ और फायदे। लहसुन (Uses of Garlic) तथा इसके हरे पत्ते साग-सब्जी, दाल, भाजी में प्रयोग किए जाते हैं जो कि अनेक गुणों से भरपूर है। भांति-भांति की दवाइयों में इस्तेमाल होता है। अब तो बाजार में लहसुन के रस के कैप्सूल भी मिलने लगे हैं। इसके गुणों का जितना भी वर्णन करें, उतना ही कम है। इसका सानी कोई नहीं। यह अति उत्तोत्तम है।
लहसुन का उपयोग करें इन 20 तरीकों से मिलेंगे अचूक लाभ

लहसुन के औषधीय गुण
कंद है लहसुन। जमीन के नीचे पैदा होता है। इसके पत्ते जमीन से बाहर होते हैं। प्याज की तरह इसकी गांठें जमीन के अन्दर होती हैं। पौधे की ऊंचाई एक-दो फुट ही होती है। पत्ते भी गुणों से युक्त हैं तथा इन्हें साग, सब्जी, मसाला में डाले जाते हैं। इससे गुण तथा स्वाद दोनों प्राप्त होते हैं। लहसुन जब निकालकर, सुखाकर रख लिया जाता है तथा वर्ष भर प्रयोग किया जाता है, तो भी यह अन्दर से गीला ही रहता है। इसका केवल छिलका सूखा रहता है।
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हर प्रदेश में लहसुन अलग-अलग तरीकों से भोजन बनाने के ढंग से, प्रयोग किया जाता है। इसके औषधीय गुण भी इसके प्रयोग की प्रेरणा देते हैं। अरुचि को रुचि में बदलता है। शरीर के अनेक विकारों को दूर करता है। पुष्ट और स्वस्थ करता है। इसका उपयोग नियमित मगर सीमित ही करना चाहिए। अनेक दवाइयों में लहसुन का प्रयोग इसकी महत्ता को जताता है।
मर्दानगी को बढ़ाने वाला लहसुन, दिमाग तेज करने वाला, कड़वा, गरम, भारी, चिकना, लिबलिबा होता है। यह गले को ठीक करता है, आवाज को स्पष्ट करने वाला आंखों की ज्योति बढ़ाने वाला तथा चेहरे की रौनक बढ़ाने वाला होता है। टूटी हड्डी शीघ्र जोड़ता है। खांसी तथा दमे के रोगी को लाभकारी है। बलगम को उखाड़ता है तथा बनने भी नहीं देता। पेट के कीड़ों को निकालता है। वायु की खराबी, कोढ़ और बवासीर में इसका प्रयोग लाभदायक है। मतलब यह कि यह अति उत्तम तथा बहुत गुणकारी है।
लहसुन का उपयोग
- लहसुन का प्रयोग न करना, इसके गुणों को नकारना है। यह मनुष्य में पुरुषत्व की कमी दूर कर उसे सक्षम बनाता है। गले से निकलने वाली आवाज को ठीक करता है। चेहरा और आंख के लिए बहुत गुणकारी है। टूटी हड्डियों को शीघ्र जोड़ने में काम आता है। दिमाग को तेज करता है। सोचने और निर्णय लेने की शक्ति बढ़ाता है।
- बढ़ी सूजन को कम करता है। पेट की सभी बीमारियों में लाभदायक है दिल की बीमारी, पुरानी खांसी, पुराने बुखार, वायु की अधिकता, पेट फूला रहना-सब अवस्थाओं में लहसुन का प्रयोग गुणकारी है। यह कोढ़, कृमि, कफ सब रोगों का डॉक्टर माना गया है। बिगड़े हुए पित्त, बिगड़े कफ पर नियन्त्रण लाता है।
- दांतों में से यदि खून निकलता हो, पायरिया का रोग हो जाए, मसूड़ों में सूजन आ जाए, पीक व खून गिरने लगे, दर्द व बदबू आने लगे, तब भी लहसुन के रस को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होगा। प्रातः व सायं, दिन में दो बार लेने से रोग समाप्त हो जाएगा।
- सरसों के तेल में लहसुन की छीली गिरियां पीसकर डाल दें। इसे आंच पर धीरे-धीरे पका लें। जले हुए लहसुन को कपड़े से छानकर निकाल कर फेंक दें। अजवायन के जले हुए पाउडर को इस तेल में मिलाएं। सेंधा नमक का बारीक पाउडर भी थोड़ी मात्रा में डाल दें। इस प्रकार तैयार मंजन दांतों व मसूढ़ों के लिए बहुत लाभकारी होता है। सस्ता और आसान भी है।
- चोट लगने पर यदि हड्डी टूट जाए, लहसुन एक अच्छे सर्जन का काम कर, हड्डी को जोड़ देता है। लहसुन की लप्सी सुबह-शाम रखने से हड्डी को जोड़ पाना सुगम हो जाता है।
- पेट के कृमि भी नाश करने के लिए लहसुन प्रयोग किया जाता है। यह पेट को साफ करता है। कीड़ों को मार देता है। मरे हुए कीड़े पोटी में बाहर निकल जाते हैं।
- यदि मोटापा आ गया हो, शरीर बुलबुल-सा होने लगे, पेट बढ़ता नजर आए, फूलता-सा लगे, तो प्रातः एक से दो लहसुन की तुरिया छीलकर, पानी से निगल लें। चबाकर निगल सकें तो और भी अच्छा है। इसे खाली पेट लेना ज्यादा लाभकर होता है। बेशुमार फायदा होगा।
- यदि लगे कि शरीर कमजोर होता जा रहा है। वीर्य पतला पड़ रहा है। शीघ्रपात होने लगा है। पुरुषबल में कमी आ रही है। लहसुन के नियमित प्रयोग से आश्चर्यजनक लाभ होगा।
- कफ बढ़ रहा हो, निकालने में दिक्कत आ रही हो थोड़ी कच्ची अदरख, थोड़ा कच्चा लहसुन शहद से साथ चाट लें। कफ उखड़कर निकल जाएगा। श्वास प्रणाली ठीक करने में आसानी होगी।
- कब्ज की शिकायत रहने लगे तो जुलाब लेकर पेट को साफ रखें।थोड़े-से लहसुन का प्रतिदिन प्रयोग करें। पेट ठीक रहेगा।
- लहसुन भारी, लबलबा होता है। बल बढ़ाता है। भोजन में भरपूर स्वाद भर देता है। यह एक ऐसा गुणयुक्त पदार्थ है, जिसका मुकाबला कोई भी अन्य कन्दमूल नहीं कर सकता। यह सर्वत्र मिल जाता है, और इसके प्रयोग से जीवन में आश्चर्यजनक लाभ होता है। इसका प्रयोग नियमित मगर सीमित होना चाहिए।
- यदि पेट में केंचुए हो गए हों (छोटे-बड़े कीड़े) तो इसे खत्म करना जरूरी होता है। इसके लिए स्वल्प रसोन पिंड को कुछ दिनों तक लगातार खाना चाहिए। इसे दिन में दो बार (एक माशा) सुबह-शाम लें। इसके बाद पलाश के बीजों का काढ़ा पीना और शीघ्र लाभ देता है। (काढ़ा बनाने की विधि आगे हैं)
- सरसों के तेल में लहसुन की गिरी जलाकर, उस छने हुए तेल को दिन में दो बार मल-मार्ग पर लगाने से भी जल्दी लाभ होता है। और पेट में पैदा हो रहे कीड़े मर जाते हैं। इसका प्रभाव ऊपर तक होने लगता है
- दांतों में कमजोरी, सांस में बदबू थूक के साथ खून गिरना, मसूड़ों से खून बहना, पीक (पीव) गिरना, दांतों का हिलना, जड़ों में दर्द होना, चिन्ता का विषय होता है। किसी से बात करना, सामने बैठना भी बुरा लगता है। एक तोला शहद लें। लहसुन की रस की 8-10 बूंदें इसमें मिला लें। इसे चाटें। यह प्रातः और सायं, दिन में दो बार दोहराएं। इसके साथ लहसुन का मंजन प्रत्येक दिन लगाते रहें। इससे अभूतपूर्व लाभ होगा। (मंजन बनाने का तरीका अलग से दिया गया है।)
- यदि किसी का रक्तचाप बढ़ जाए। मन और शरीर में गड़बड़ी लगने लगे। रक्तचाप की चाल अपनी सीमा से बढ़ जाए। यदि इस पर नियन्त्रण समय रहते न हो तो नसे फट सकती हैं। लकवा का दौरा भी पड़ सकता है। घबराहट, बेहोशी, भीतर में गर्मी महसूस होती है थोड़े परिश्रम से दम फूलने लगता है। बायीं ओर सोने में दिक्कत आने लगती है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी होने लगता है। इस प्रकार की कई अस्वाभाविक बातें होने लगती है। रक्तचाप को नियन्त्रित करने के लिए लहसुन की छिली हुई गिरी की एक तोला पीठी लें। इसे एक पाव बकरी के दूध में मिला दें। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर पी लें। तबीयत ठीक हो जाने पर, लहसुन की पीठी की मात्रा घटाते जाएं। आधी कर दें। कुछ दिन इसका उपयोग करें।
- यदि गिर जाने के हड्डी टूट जाए तो 35-40 दिनों तक नियमित रूप से लहसुन की लिप्सी खाने से हड्डी स्वतः जुड़ जाती है। यह अचूक दवा है (लप्सी बनाने की विधि आगे बताई गई है)
- आमवात की बीमारी बिगड़े हुए खानपान का नतीजा होता है। इससे जोड़ों में सूजन, जकड़न, दर्द महसूस होती है। इस कष्ट से छुटकारा पाने के लिए ‘लघु रसीन पिंड’ खाने से आराम मिलता है। यदि रोग शुरुआती है तो दो सप्ताह, यदि अधिक है तो चार सप्ताह तक लेने से पूरी तरह ठीक हो जाएंगे। अनाज शरीर में पचता न हो मंदाग्नि की शिकायत हो, अधिक चिकना । आहार करना, स्त्रीगामी बने रहना, परिश्रम न करना, ऐसी हालत में भोजन से कच्चा रस बनकर तकलीफ देता है। यही आंव है। पेट में वायु बिगड़ने लगती है। यही आव बिगड़ी वायु के साथ कफ स्थानों पर पहुंच जाती है। यह अपने आप आमाशय, कंठ, सिर, शरीर के जोड़ों तथा कलेजे तक पहुंच कर कलेजे पर बोझ पड़ने लगता है। कमजोरी भी महसूस होती है जब वायु, आंव और कफ तीनों का प्रकोप बढ़ जाता है तो कमर और जोड़ों में दर्द होने लगता है। इसी को आमवात कहते हैं। शरीर में भारीपन, बदहजमी, भूख, बुखार, सूजन, प्यास, आलस महसूस होने लगते हैं। इस सबके लिए ‘लघु रसीन पिंड’ खाकर, स्वस्थ हो सकते हैं (लघु रसौन पिंड बनाने की विधि अलग से दी जा रही है।)
- जब बदन के भीतर के कफ, पित्त और वायु तीनों बिगड़ जाएं, शरीर के अन्दर बहाने वाले रस के रास्ते में फैल जाएं, तब शरीर में जकड़न होने लगेगी। भारीपन महसूस होगा। ये दोष जूड़ी का बुखार पैदा करेंगे। इस बुखार को घटने और बढ़ने वाला बुखार भी कहते हैं। इससे शरीर में गर्मी और हाथ तथा पैर ठंडे पड़ जाते हैं। यह बुखार रोजाना एक ही वक्त पर आने लगता है। बुखार से पहले ठंड महसूस होती है। इस अवस्था में लहसुन से केवल 3 दिन का इलाज कर इस बुखार से छुटकारा पाया जा सकता है। लहसुन का लेप बना लें। इसे बुखार के समय से दो घंटे पहले, हाथ और पांव के नाखूनों में लगा दें। लहसुन का रस और तिल का तेल बराबर मात्रा में मिला लें। इसे चटाते रहें। हर घंटे बाद। मगर जैसे ही बुखार आ जाए। इसे चटाना बन्द कर दें। पूरे इलाज को अगले दिन, उससे अगले दिन भी दोहराएं। बुखार पहले अपना समय बदलने की कोशिश करेगा फिर आना ही बन्द कर देगा।
- शरीर में किसी भी कारण से जब वायु बिगड़ जाए और यह रस बहाने वाली नली की खाली जगहों में भर जाती है, और तरह-तरह की वायु की बीमारी पैदा कर डालती है, तो कई बीमारियां हो सकती हैं। इनमें से एक लकवा भी है। यह वायु विकार चिन्ता से अधिक नारी गमन से अधिक घोड़े की सवारी से, चोट लगने तथा अधिक रक्त वह जाने से, अक्सर रूखा व ठंडा भोजन करने से, किसी भी बीमारी का ठीक से इलाज न होने से, शरीर के अन्दर का रस, खून व मांस सूख जाने से आदि-आदि कारणों से वायु विकार और फिर लकवा हो जाने की संभावना बनी रहती है। इसे ही ‘पदावध’ भी कहते हैं। आप लहसुन की गिरी लेकर छील से दो तोले की मात्रा को पीस लें। इसे आधा किलो गाय के शुद्ध दूध में उबालकर खीर बना लें। ठंडी करने के बाद लकवा के बीमार को खिलाएं। यह खीर प्रातः प्रतिदिन, कम-से-कम तीस दिन रोगी को खिलाएं। धीरे-धीरे रोगी ठीक होता जाएगा। इस इलाज से रोग जड़ से चला जाएगा। एक बात और, खीर के साथ-साथ लहसुन के तेल की मालिश भी करें। रोगग्रस्त भाग पर मालिश जरूरी है। (लहसुन का तेल बनाने की विधि आगे दी जा रही है।)
- वातगुल्म या वायुगोला, अधिकतर स्त्रियों को होता है। पेट के अन्दर की नसों में वायु इस तरह फैलकर उन्हें एक स्थान पर लतर की शक्ल धारण कर लेता है। इस बीमारी से जब पीड़ा हो रही हो तो लहसुन से इलाज सम्भव है। लहसुन की दो तोला तुरियों को छीलकर, कूटकर आधा किलो मट्टे में पकाना चाहिए। इसे खूब गाढ़ा कर लें। ठंडा होने पर रोगी को चटाएं। इसे 25-30 दिनों तक, हर प्रातः चटाने से वायु का गोला शांत हो जाता है। दौरा नहीं पड़ता।
लहसुन का तेल बनाने का तरीका
200 ग्राम छिली हुई लहसुन की तुरियां। इन्हें कूटकर पीठी बना लें। 400 ग्राम सरसों का तेल तथा डेढ़ किलो पानी लें। तीनों चीजों को मिलाकर लोहे की कड़ाही में पका लें। जब ठंडा हो जाए तो साफ कपड़े से छान लें। यही लहसुन का तेल है। इस तेल से लकवाग्रस्त अंग पर मालिश करने से लाभ होगा।
लघु रसीन पिंड बनाने की विधि
निम्न वस्तुओं का प्रबन्ध करें- लहसुन की छीली हुई तुरिया सवा सेर साफ 1 सुखाकर रखा काला तिल आठ ताले। हींग का घी में भून किया घुला हुआ और ते एक तोला। निम्न सबह चीजें एक-एक तोला प्रति- (1) छोटी पीपल, (2) पोपरा मूल, (3) काला नमक (4) सांभर नमक, (5) समुद्री नमक, (6) सोचल नमक, (7) सेवा नमक, (8) अजवायन, (9) बड़ की छाल, (10) सोंठ, (11) काली मिर्च (12) सज्जीखार, (13) जवाखार (14) कूठ, (15) सौंफ, (16) धनिया (17) अजमोदा। इनके अतिरिक्त तिल का तेल और कांजी-दोनों 32 तोले लहसुन, तिल और क्षारों को अलग-अलग पीस लें। नमकों को मिलाकर पीसकर अलग रख लें। काष्ठ औषधियों को पीसकर छान लें। इन सबका ऐसे बर्तन में मिलाकर रखें-जो पुराना घी वाला हो। इनमें तेल डालकर खूब मिला दें। इन्हें ढक्कन से बन्द कर, मिट्टी से पूरी तरह सील बन्द कर दें। कोई 15 दिनों तक इसे इसी अवस्था में पड़ा रहने दें। अब यह खाने के लिए तैयार है। यही लघु रसौन पिंड है।
लहसुन का मंजन कैसा बनता है
एक छटांक सरसों का शुद्ध तेल। लहसुन की तुरियों को छीलकर, कूटकर इसमें डालें। इसे धीमी आंच पर पकाएं। तब तक पकाते रहें जब तक लहसुन जल नहीं जाता। ठंडा कर छान लें। अजवायन दो तोले। इसे जलाकर भस्म बना लें। एक तोला सेंधा नमक लेकर पीस लें। इन दोनों को तैयार किए तेल में डाल दें। मिलाने पर यह लहसुन का चूर्ण तैयार हो जाएगा। यह पारिया का अचूक इलाज है।
लहसुन की लप्सी बनाने की विधि
1. | पांच तोले लहसुन की छिली हुई गिरियां |
2. | अढ़ाई तोले लाख |
3. | सवा तोला मुलट्ठी |
4. | चार तोले शहद |
5. | दस तोले आटा |
6. | दस तोले खांड |
7. | दस तोले भैंस का घी |
लाख और मुलट्ठी को पीस, छानकर पाउडर तैयार कर लें। लहसुन को कूटकर पीठी बना लें। घी में आटा, लाख और मुलट्ठी को भूनें। शक्कर को आधा सेर पानी में घोलकर इसमें डालें। जब पकने लगे तो लहसुन की पीठी भी डाल दें। 1 खूब मिलाएं। हिलाते भी रहें। खूब गाढ़ा होने दें। जब ठंडा हो जाए तो शहद मिला लें। 1
इसे दूध के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन लें। टूटी हुई हड्डी भी जुड़ जाएगी। यह कोर्स चालीस दिन का है।
काढ़ा बनाने की विधि
पलाश का कूटा बीज 1 तोला, पानी आधा सेर, पानी में यह पलाश का बीज डालकर आंच पर पकाएं। जब केवल चार तोले काढ़ा रह जाए, इसे उतार कर ठंडा कर लें। इसे आधा सुबह, आधा शाम को पिएं। लाभ होगा। इससे पेट के छोटे-बड़े कीड़े मर जाएंगे।
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