अदरक का उपयोग करें इन तरीकों से मिलेगा भरपूर फायदा। अदरक (Uses of Ginger) को कंद जाति का काफी समय तक हरा रहने वाला मसाला ही समझें। जिसे उबाल व सुखाकर सोंठ भी बनाई जाती है। यह खाने-पीने की चीजों, साग सब्जी, दाल, मीट आदि में जायका बढ़ाने के लिए भी प्रयोग की जाती है तथा अपने गुणों की वजह से बहुत लोकप्रिय है।
चूंकि इसमें औषधीय गुण भी हैं, इसीलिए इसे भिन्न-भिन्न दवाइयों के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। अदरक को आद्रक (संस्कृत में), आलें (मराठी में), आदा (बंगला में), अल्लम (तेलुगू में), हंजी (तमिल में), आदु (गुजराती में) तथा अल्लम (कन्नड़ में), के नामों से जाना जाता है।
अदरक का उपयोग करें इन 16 तरीकों से मिलेगा भरपूर फायदा

कफनाशक के रूप में
अदरक कफनाशक है। इसके प्रयोग से कफ उखड़ता है। कफ का बनना भी बन्द हो जाता है। इसके रस को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होता है। अदरक, जैसे कि भिन्न नामों से पता चलता है, पूरे भारत में प्रयोग में लाई जाती है। अदरक की खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। तर-गरम देशों में इसकी उपज की जाती है।
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अदरक कैसे खाएं
भोजन को अधिक स्वादिष्ट व जायकेदार बनाने, एक विशेष सुगन्ध के लिए तथा शरीर के लिए लाभकारी बनाने में, अलग-अलग प्रदेशों में, अलग-अलग ढंग से उपयुक्त की जाती है। भारत विशाल है तथा रिवाज भी यहां अनेक हैं। इसलिए अदरक को खाने के तरीके भी अनेक हैं। चूंकि इसकी तासीर गर्म है, इसलिए इसे सर्दियों में ज्यादा प्रयोग करते हैं। सर्दियों में प्याज, लहसुन और अदरक तीनों का इस्तेमाल बढ़ जाता है।
इसकी फसल की बीजाई बरसात के समाप्त होते-होते कर दी जाती है। सर्दी शुरू में कहीं-कहीं ताजा फसल आ जाती है। मध्य-सर्दी में तो यह बाजार में के बहुत उपलब्ध रहती है। अदरक का मुख्यतः प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है-
- यह कफनाशक है। इसे खाने से कफ उखड़ता है। कफ का बनना भी घट जाता है। इसके रस को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होता है।
- कलेजे में सूल पड़ने लगे, डकार खट्टे व बार-बार आ रहे हो, भोजन पचाने में दिक्कत हो तो अदरक की सब्जी बनाकर सूखी चपाती के साथ खाएं बहुत शीघ्र लाभ होगा।
- जिन्हें अक्सर कब्ज की शिकायत रहती है, वे कच्ची अदरक को नमक के साथ चूसें, इसका रस निकाल लें या इसके छौंक लगाकर दाल-सब्जी खाएं, पाखाना ढीला होगा और धीरे-धीरे कब्ज खत्म हो जाएगा।
- जिन्हें पुरुषत्व में कमी लगे, वीर्य पतला हो और कमजोरी महसूस होती हो, वह नियमित रूप से अदरक का रुचि एवं आवश्यकता अनुसार प्रयोग करें अवश्यमेव लाभ होगा।
- दमे की शिकायत वाले प्राणियों को चाहिए कि अदरक को अपने अंग-संग कर लें। इसके रस को शहद में मिलाकर, कभी पिसी काली मिर्च, कभी भुनी पिसी मगों के साथ नियमित रूप से लेवें श्वास प्रणाली में काफी सुधार होगा।
- कम भूख लगने की वजह से भोजन भी अरुचिकर लगने लगता है। कच्ची अदरक के टुकड़ों को नमक के साथ, भोजन से पहले खाने से, बलगम ढंट जाएगा, गला ठीक हो, भूख बढ़ेगी व भोजन पर्याप्त मात्रा में खाया जा सकेगा। यह अचूक औषधि है।
- यदि दस्त ज्यादा पतले आने लगें, सीधा लिटाकर नाभि को उरद के आटे से घेर लें। नाभि खाली रखें। इस खाली स्थान पर अदरक का रस भर दें। देखते ही देखते पानी से दस्त ठीक हो जाएंगे।
- मान लो ज्यादा खट्टा खा लिया हो, जुकाम बिगड़ जाए, ठंड का प्रकोप बढ़ गया हो, इन सब दोषों की अचूक दवा है अदरक अदरक का ताजा रस निचोड़कर 5-6 माशे की खुराक बनाकर पिलाएं। इसे हर आधे घंटे बाद दोहरा दें। तीन-चार खुराकों बाद ही गला साफ हो जाएगा। रोगी रोग से मुक्त जाएगा। अतः अदरक बहुत ही लाभकारी मसाला व दवाई मानी गई है।
- यदि टड़ी (पाखाना) में से छोटे-छोटे कीड़े निकलते हों, जिसके कारण मिचली, भूख न लगना, सदा पेट में तनाव रहना जैसी परेशानियां हों, तो भी अदरक लाभ देती है। मुंह से राल गिरती हो तो अदरक से इलाज करें। सिल पर 200 ग्राम अदरक को पीस लें। 75 ग्राम सिरका, 10 ग्राम काला नमक और 10 ग्राम लहसुन का रस मिलायें। इस सबको शीशे के बर्तन में रखें। यह चटनी है। इसे 10-15 ग्राम भोजन के साथ खाया करें पेट के सारे कीडे पोटी में निकल 1 जाएंगे। ऊपर लिखी सभी तकलीफें दूर हो जाएंगी।
- यदि शरीर में कहीं चोट लगने के कोई अंग कुचल जाए, दर्द बहुत होता हो, तो इस पर अदरक का लेप लगावें। अदरक को छीलकर, पीस लें। इसकी एक इंच मोटी परत लगाकर बांध लें। यह 2-3 घंटे बंधी रहने दें। फिर पट्टी व लेप को हटाकर इस अंग को तेल से चुपड़ दें। इस क्रिया को प्रतिदिन 2 बार करें। 3-4 दिनों में दर्द पूरी तरह गायब हो जाएगा।
- ठंड लगने से, ठंडी चीजें खाने से, मौसम की तबदीली के कारण ही सही, यदि खांसी लग जाए तो आसान इलाज है। गले की तकलीफ भी तथा सांस लेना भी आसान हो जाएगा। अदरक का 10 ग्राम रस निकाल लें। इसे दूर होगी, 10 ग्राम शहद में मिला दें। इसे चाटने से खांसी की तकलीफ ठीक होगी। इसे दिन में दो बार, सुबह-शाम चाटें। तीन-चार दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।
- पेट में हवा भरी रहती हो। तनाव बना रहता हो। दर्द भी न जा रहा हो। अदरक के खौलते पानी में (आधा कप पानी) में जवाखार डालकर उबाल दें। फिर इसमें थोड़ा-सा अदरक का ताजा रस डालें। इसे गर्मागर्म पी लें। इसे हर 2-2 30 घंटों बाद दोहरा दें। दिन में 2-3 बार से ज्यादा न लें। इससे पेट हल्का हो जाएगा और रोगी को बड़ा आराम मिलेगा।
- अधिक खून निकल जाने से या किसी भी रोग के कारण किसी का भी हाथ-पांव या दोनों में से एक ही, सूखने लगे तो भी अदरक का प्रयोग लाभकारी होगा। अदरक के तेल से मालिश करें। तुरन्त लाभ होगा। अदरक के तेल की पट्टी बांधना भी जल्दी आराम देने वाला होता है। इसे केवल सुबह-शाम करने से, पांच-सात दिनों में रक्त का प्रवाह बढ़ जाएगा और सूखी नसें काम करने लगेंगी तथा हाथ-पांव भी ठीक से काम करने में समर्थ हो जाएंगे। (अदरक का तेल बनाने की विधि आगे दी है।
- यदि चमड़ी पर खुजली होने लगे। ददोरे बन जाएं। जलन भी होती हो, ऐसे समय शरीर गर्म रहने लगता है। उबकाई महसूस होती है। यही ‘शीत-पित्त’ कहलाती है। पहचान में यह ऐसा लगता है जैसे चीटियों ने काटा हो। ऐसे में यदि अदरक का हलवा खाया जाए तो लाभ होता है। रक्त ठीक हो जाता है। चमड़ी सामान्य होने लगती है। (अदरक का हलवा बनाने की विधि आगे दी जा रही है।)
- आमवात की शिकायत अक्सर ढलती उम्र में होने लगती है। बुढ़ापे में आमवात का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके कारण चलने-फिरने में दिक्कत, भार उठाते समय हाथों या पैरों की उंगलियां ठीक से काम न करें, भूख कम लगे तथा जोड़ों में दर्द व सूजन होने लगे। पेशाब कम तथा लाल-सा आने लगे तो ऐसे में अदरक से बना ‘शुण्ठी घृत’ खाना चाहिए। इससे ऊपर लिखी सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी। (शुण्ठी घृत बनाने की विधि आगे बताई गई है।)
- संग्रहणी एक नामुराद बीमारी है। इससे भूख मरने लगती है। खाया पिया हजम नहीं होता। मुंह का स्वाद बिगड़ने लगता है। पोटी में खाया-पिया, ज्यों का त्यों, निकल जाता है। अक्सर कलेजे की धड़कन भी तीव्र रहने लगती है। इन सब तकलीफों में ‘आर्द्रक घी खाना फायदेमंद होता है।
विधियां
‘अदरक घी’ बनाने की विधि
आप गाय का शुद्ध घी 750 ग्राम लें। अदरक को छीलकर, सिल पर पीसकर 1500 ग्राम लेवें। दोनों चीजों को लोहे की कड़ाही में पका लें। केवल पी बचेगा। बाकी जल जाएगा। इसे ठंडा कर दें। इसे निचोड़कर घी को अलग कर लें। (तेज आंच में इसे नहीं बनाना चाहिए। घी को अब सफाई से छानकर अलग करना है। इसमें जली हुई अदरक न आए।) यह आर्द्रक घी है।
बकरी का उबला हुआ, सील-गर्म दूध एक कप लें। इसमें 5-7 बूंद इस आर्द्रक घी की डालें। दिन में दो बार, प्रातः व सायं पी लें। इसे नियमित कुछ समय तक पीने से संग्रहणी में होने वाली सारी तकलीफें दूर होंगी। तिल्ली जैसे रोगों में भी लाभ होगा। खांसी, खून की कमी, थोड़ा-थोड़ा बुखार रहना, मंदाग्नि आदि में भी लाभ होता है। इस घी को लेने से मुंह का स्वाद फिर से ठीक हो जाता है। पेट की वायु ऊपर नहीं चढ़ती। छाती की ओर न जाकर नीचे की ओर जाती है तथा आसानी से निकलकर आराम देती है।
सोंठ घी बनाने का तरीका
सोंठ को कूट-पीसकर पाउडर बना लें। यह कपड़छान होना चाहिए (250 ग्राम), गाय का शुद्ध घी (750 ग्राम) लें, पानी (3.5 लीटर) इन तीनों चीजों को लोहे की कड़ाही में मिला लें। धीमी आंच पर धीरे-धीरे पकाएं। जब पानी पूरी तरह खत्म हो जाए तो इसे आंच से उतारकर ठंडा होने दें। इसे साफ कपड़े से छान कर घी अलग कर लें। यही ‘शुण्ठी थी’ है।
बकरी के दूध के साथ (सील-गर्म दूध) कुछ बूंदें घी की पी लें। इसे प्रातः व सायं लेवे यह शुष्ठी थी बहुत उपयोगी होता है। मंदाग्नि तीव्र होगी कमर का दर्द दूर होगा कफ वायु की सारी तकलीफें खत्म होंगी।
कैसे बनाएं अदरक का हलवा
आधा किलो अदरक को लेकर छीलकर, सिल में बारीक पीस लें। गाय का शुद्ध घी डेढ़ किलो लेकर दोनों को मिला दें। इसे आंच पर इस प्रकार धीरे-धीरे पकायें कि यह खोवा जैसा हो जाए। इसका रंग हलका ब्राऊन होने दें। शक्कर डेढ़ किलो की चाशनी भी बना लें। यह एक तार हो। इसे ऊपर बनाए खोवा में डाल, हलवा तैयार कर लें। 150 ग्राम हलवा एक खुराक है। इसे प्रातः व सायं दिन में दो बार खावें। इसे गाय के एक कप दूध के साथ खाना चाहिए।
इसको कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करें। हलका हलका बुखारा होना, जलन महसूस होना ठीक हो जाएगा। शीत-पित्त में भी लाभ होगा। उबकाई आना भी ठीक होगा। मन्दागनि में फायदा होगा। यह एक ऐसी अचूक दवा है जो पेट के कीड़ों को खत्म कर, हाजमे को ठीक करेगी। जुकाम, दमा, खांसी जैसी बीमारियों को भी जड़ से उखाड़ देती है। हाथों-पैरों का ऐंठना भी बन्द हो जाएगा।
अदरक का तेल बनाने का ढंग
250 ग्राम तिल का तेल, 250 ग्राम पिसी हुई अदरक, 750 ग्राम भैंस का अच्छा दूध, 50 ग्राम सेंधा नमक, लोहे की कड़ाही लें। लोहे की कड़ाही में तेल गर्म करें। धुआं निकलने पर इसे तेल में नींबू के तीन-चार पत्ते डाल दें। ये पत्ते गर्म तेल में घूमते-घूमते रुकने लगेंगे। पत्ते पापड़ की तरह भुनकर सूख जाएंगे। यह पहचान है तेल के खूब गर्म होने की। इस तेल को खूब ठंडा होने दें। फिर इसमें भैंस का दूध और पिसी हुई अदरक मिला दें। इसे धीमी आंच पर पका लें। कुछ देर बाद इसमें सेंधा नमक भी डाल दें। जब केवल तेल बच जाए, बाकी सब जल जाए तो इसे ठंडा कर छान लें। यही अदरक का तेल कहलाता है। पहले बताए रोगों में इसका उपयोग करें। बहुत लाभ होगा।
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