जीरे का उपयोग करें इन 20 तरीके से और जाने इनसे औषधीय गुड़ों के बारे में। भोजन में रुचि और मुंह के स्वाद को बढ़ाने वाला जीरा भी एक मसाला है। जो सभी प्रकार की दाल, सब्जियों, अचारों में प्रयुक्त होता है। गर्मी में यह जलजीरा बनाने के काम आता है। इसका प्रयोग दवाइयों में भी बहुत मात्रा में किया जाता है। अनेक औषधियां जीरे (uses of jeera) से बनती हैं। भोजन को स्वादयुक्त बनाने के लिए जीरे का उपयोग जरूरी हो गया है। हर प्रदेश में इसका थोड़ी भित्रता के साथ उपयोग होता है। कई प्रकार के अचार बनाने में इसे इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक कि मीठे अचारों में भी यह डाला जाता है।
जीरे का उपयोग करें इन 20 तरीके से और जाने इनसे औषधीय गुण

जीरे की पैदावार के लिए अनुकूल खेती व जलवायु कहीं-कहीं होती है। सब प्रदेशों में नहीं। स्वाद में कड़वा, तासीर में गरम प्रभाव में वायुनाशक, पेट के लिए भूख बढ़ाने वह हजम करने में सहायक होता है। अतिसार, ग्रहणी-विकार में लाभकारी। पेट के तनाव को तुरन्त कम करता है। यदि पोटी में कीड़े आने लगें, तो भी जीरे का उपयोग इन्हें मार देने में सहायता करता है।
यदि पतली पोटी आ रही हो, पाचन शक्ति कमजोर हो गई हो, बच्चेदानी में कुछ खराबी लगे, भोजन पचने में मुश्किल आ रही हो, हलका हलका अक्सर बुखार रहने लगा हो, शरीर कमजोर और वीर्य पतला हो गया हो, खाने-पीने को मन न करता हो, कफ बढ़ गया हो तथा आंखों में खारिश तथा लाली रहने लगी हो, तो भी जीरा बहुत उपयोगी है। इसके सेवन से ऊपर लिखी सभी खराबियां ठीक होने लगेंगी।
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जीरे के उपयोग
- यदि पेट की अग्नि कम हो, भोजन कम या देरी से पचता हो, तो भोजन से पहले जलजीरा बनाकर एक गिलास पिएं। थोड़े ही दिनों बाद पेट ठीक हो जाएगा। पाचन शक्ति बढ़ जाएगी। यदि मनुष्य नई या पुरानी संग्रहणी से पीड़ित हो। खाया पिया ज्यों-का-त्यों निकल जाता है, हजम न होता हो तो रोगी को जीर के लड्डू खिलाने चाहिए। यह कोर्स 40 दिनों तक करना जरूरी है। इससे पूर्ण लाभ होगा। (जीरे के लड्डू बनाने की विधि आगे दी गई है।)
- बार-बार तथा पानी-सी पतली टट्टी हो रही हो तो भी जीरा लाभकारी होगा। भुने जीरे का बारीक चूर्ण शहद में मिलाकर रोगी को हर चार घण्टे बाद चाटने को दें। गाय के दूध या बकरी के दूध से बने मट्ठे में भुना बारीक चूर्ण काले नमक के साथ रोगी लेवे। रोग सूक्ष्म हो जाएगा।
- यदि कई दिनों से बुखार आ रहा हो, तो भी जीरा लाभ देगा। सफेद जीर को मोटा कूटकर 500 ग्राम पानी में मिलाकर पिएं। पुराना बुखार ठीक होगा।
- यदि मुंह में छाले आ जाएं, तो जीरे के पानी और छोटी इलायची का चूर्ण, फिटकरी के फूले से मिलाकर कुल्ले करें। लाभ होगा।
- यदि कुत्ता काट ले तो तुरन्त इलाज हेतु जीरा और काली मिर्च घोट-छानकर पिलाएं। जहर उतर जाएगा।
- यदि मकड़ी या लूता विष चढ़ जाए तो जीरा और सोंठ को पानी में पीसकर लगाएं। तुरन्त लाभ होगा।
- शरीर को स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट रखने के लिए जीरे की चाय बनाकर सुबह-शाम पिएं। चाय पत्ती की जगह पिसा जीरा प्रयोग में लाएं।
- मान लो चेहरे पर धब्बे, झाइयां पड़ गई हों, तो भी जीरा ठीक करने में सहायक होगा सफेद व काला जीरा, काला तिल और सरसों बराबर-बराबर लेकर दूध में पीस लें। लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं। लाभ होगा।
- जीरे का तेल खुजली, चर्म रोग आदि में अचूक दवाई का काम करता है। नियमित मालिश करते रहने से यह रोग दूर हो जाते हैं।
- जीरे का प्रयोग दाल, सब्जी में लगातार करते रहने से कई रोग स्वतः नियन्त्रित हो जाते हैं।
- जीरे का अवलेह खाने से प्रदर, निर्बलता, श्वास, प्रमेह, ज्वर, अरुचि, कलेजे में दाह आदि में लाभ करता है। (इसे बनाने की विधि आगे दी गई है)
- प्रदर रोग से हाथों, पैरों व आंखों की जलन जीरे की खीर खाने से मिट जाती है। पाचन शक्ति में सुधार होता है। (जीरे की खीर बनाने का तरीका आगे देखें।)
- यदि किसी को रतौंधी की बीमारी हो जाए तो भी जीरे का प्रयोग शर्तिया इलाज है। जीरा, आंवला और कपास के पत्ते बराबर लें। इन्हें पानी में पीसें । इस कूटे हुए सामान को सिर पर इक्कीस दिन नियमित बाधें। ऐसा करने से अन्धापन ठीक हो जाता है तथा रतौंधी गायब होती है।
- यदि शरीर में आम विष हो जाए, जीर्ण ज्वर से पीड़ित हो तो अचूक दवा है। पुराना गुड़ 500 ग्राम, 750 ग्राम पानी में पकाते रहें। जब तीन तार की चाशनी तैयार हो जाए, जीरे का चूर्ण 200 ग्राम इसमें मिला दें। खूब मिलाएं इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें प्रति गोली 2 माशा की बनायें इसका सेवन दिन में दो बार, प्रातः सायं करें।
- यदि किसी को सुजाक का रोग हो जाए और वह परेशान हो तो यहां दिया इलाज फायदा करेगा। जीरा 40 ग्राम, खून खराबा 20 ग्राम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी 20 ग्राम, कलमी शोरा 50 ग्राम, धनिया 50 ग्राम इन सबको बारीक पीस लें। चूर्ण बन जाएगा। एक चुटकी प्रातः, एक चुटकी शाम लाभ होगा।
- जीर्ण ज्वर से छुटकारा पाने के लिए बहुत आसान तरीका। जीरा छः माशे गुड़ के साथ प्रातः व सायं खाने से लाभ होने लगता है। इसे दो सप्ताह से तीन सप्ताह तक खावें ।
- ऊपर दिए रोग के लिए एक और इलाज है—गाय के दूध में जीरा डालकर, इसे खूब पकाएं। जब यह गल जाए तो इसे सुखा लें। सूखने पर चूर्ण बना लें। इसे प्रतिदिन चीनी या मिश्री के साथ प्रातः व सायं लें।
- मंदाग्नि में भोजन के साथ जलजीरा पावें। भूख बढ़ जाएगी। मंदाग्नि की शिकायत खत्म होगी। इसमें जीरे का छौंक बहुत लाभकारी होता है (जलजीरा बनाने का तरीका आगे देखें।)
- आंव वाली पोटी आना, मंदाग्नि, संचित संग्रहणी, उदर रोग, पेट में दर्द बना रहना, भोजन में रुचि न होना। इसका सही इलाज है-जीरे के लड्डू खाना। (इसे बनाने की विधि आगे दी जा रही है।)
- यदि आंखों में कड़क बनी रहे, लाली आ जाती हो, थोड़ी सूजन की भी शिकायत हो, आंखों के किनारों पर कीचड़ निकल आता हो, तो यह इलाज करें जीरा छः माशे हथेली पर मसलकर साफ कर लें। अब इसे मलमल के सफेद साफ कपड़े में रखें। इसकी पोटली बना लें। इस पोटली को एक कप पानी में भिगो लें। इस तैयार हुए जीरे के पानी को पोटली के सहारे आंखों में छोड़ें। कोई पांच मिनट लगावें। इसे हर घंटे बाद दोहराते रहें 3-4 बार तक दोहरायें। आश्चर्यजनक लाभ होगा।
जलजीरा बनाने का तरीका
नाम | मात्रा |
---|---|
जीरा | 50 ग्राम |
छोटी हरें, धनिया, काली मिर्च, काला नमक, सूखा पोदीना मात्र | 05 ग्राम |
सेंधा नमक | 10 ग्राम |
कोकम | 10 ग्राम |
तलाव हींग | स्वाद अनुसार |
बनाने की विधि – (1) तलाव हींग को घी में भूनकर ब्राउन लाल कर लें। (2) छोटी हर्रे, जीरा, धनिया इन तीनों को कड़ाही में हलका भून लें-बिना घी के। इन्हें कूटकर, बारीक छान लें। सभी चारों को एक साथ। यह चूर्ण तैयार है। पानी के आधे गिलास में आठ आने भर अन्दाज से चूर्ण मिला लें। इसे पीने से लाभ होगा। इसको भोजन के समय लेने से अधिक लाभ होता है।
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