बंची अय्यर का जीवन परिचय: अय्यर का जन्म मद्रास में एक ब्राह्मण कुटुम्ब में हुआ था। उनके माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे सदा ईश्वरोपासना में लगे रहते थे। अय्यर के हृदय पर भी उनके माता-पिता के विचारों की छाप पड़ी थी। बंची अय्यर महान साहसी, वीर और निर्भीक थे। वे महान देशभक्त भी थे। भारत की संस्कृति और भारत का प्राचीन गौरव उन्हें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय था।
बंची अय्यर का जीवन परिचय

Vanchi Ayyar Biography in Hindi
बंची अय्यर जब बन्दी बनाये गए थे, तो उनकी जेब से एक पर्चा मिला था। उस पर्चे पर लिखा था- जिस देश में राम और कृष्ण का जन्म हुआ था और जिस देश में महाराणा प्रताप, शिवाजी और गुरु गोविन्दसिंह ने राज्य किया था, उसी देश में गोमांसाहारी अंग्रेजों का राज्य हो- यह बड़ी लज्जा और बड़े दुःख की बात है।
प्रत्येक नर-नारी का कर्तव्य है कि वह भारत से अंग्रेजों को निकालने का प्रयत्न करे, अंग्रेजी राज्य को समाप्त करने में योग दे। उक्त पर्चे की शब्दावली से ही अय्यर की निर्भीकता और उनके साहस का चित्र सामने आ जाता है। क्रान्तिकारी इतिहास में वे सदा अपनी निर्भीकता के कारण गौरवपूर्ण स्थान पाते रहेंगे।
बाल्यावस्था में ही अय्यर बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे प्रतिदिन नियमपूर्वक मंदिर में जाते थे और भगवान की मूर्ति के समक्ष खड़े होकर प्रार्थना किया करते थे। प्रार्थना करते-करते उनकी आंखों से आंसुओं की बूंदें भी टपकने लगती थीं।
अय्यर की प्रारंभिक शिक्षा तमिल में हुई थी। उच्च शिक्षा उन्होंने अंग्रेजी में प्राप्त की थी। वे संस्कृति के भी अच्छे ज्ञाता थे। जिन दिनों अय्यर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उन्हीं दिनों सुप्रसिद्ध नेता विपिनचन्द्र पाल मद्रास गये। विपिनचन्द्र पाल उग्र विचारों के नेता थे। उन दिनों बंगाल में ही नहीं, समस्त भारत में उनके नाम की गूंज थी। पाल ने मद्रास का दौरा किया। उन्होंने कई बड़े-बड़े नगरों में भाषण दिये। अपने
भाषणों में उन्होंने कहा, “अंग्रेजों ने बड़ी चालाकियों के साथ भारत पर अपना पंजा जमा रखा है। जब तक भारत पर अंग्रेजों का पंजा जमा रहेगा, भारत गरीबी के दुःख से सिसकता रहेगा। भारत के प्रत्येक युवक का कर्तव्य है कि वह अंग्रेजों के पंजे को भारत की गर्दन के ऊपर से हटा दे। इस समय यही धर्म है, यही सबसे बड़ा कर्म है।”
पाल की वाणी ने सैकड़ों मद्रासी युवकों के प्राणों को जकड़ लिया। वे घर-द्वार छोड़कर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के प्रयत्नों में लग गये। उन युवकों में चिदम्बरम् पिल्ले और बंची अय्यर का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जा सकता है। इन दोनों ही साहसी और वीर युवकों ने भारत को अंग्रेजों के शिकंजे से मुक्त कराने में अपने प्राणों की भी बलि चढ़ा दी थी।
पाल की प्रेरणा से ही पिल्ले और बंची अय्यर बड़े जोरों के साथ रंगमंच पर आ गये। दोनों ही वीर देशभक्त चारों ओर घूम-घूम कर विद्रोह की आग जलाने लगे। कहा जाता है कि दोनों ही वीरों ने आपस में मिलकर 108 अंग्रेजों की हत्या की योजना बनाई थी,
किन्तु योजना कार्य रूप में परिणत हो इसके पूर्व ही चिदम्बरम् पिल्ले को बन्दी बना लिया गया। उनकी गिरफ्तारी पर सारे नगर में एक पर्चा वितरित किया गया, जिसमें निम्नांकित पंक्तियां लिखी हुई थीं- “अरे फिरंगी सर्प, तुमने एक युवक को डस लिया। तुम अब तक न जाने कितने ही भारतीय युवकों को डस चुके हो।
तुम समझते हो कि हम तुम्हारे डसने से भयभीत हो जायेंगे? नहीं, जब तक तुम हमारे देश में रहोगे, हम कभी भी भयभीत नहीं होंगे। समझ लो, तुम्हारा अंत अब निकट आ गया है। तुम्हें भारत को छोड़कर जाना ही पड़ेगा, अवश्यमेव जाना पड़ेगा।
कहा जाता है कि अय्यर ने ही उस पर्चे को लिखा था और उसी की प्रेरणा से वह सारे मद्रास में बांटा गया था। पिल्ले की गिरफ्तारी के पश्चात् अय्यर ने ही मद्रास राज्य में विद्रोह की आग को जलाने के लिए प्रशंसनीय कार्य किये। उनके साथियों में नीलकंठ ब्रह्मचारी और शंकरकक्षा का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जा सकता है।
बंची अय्यर ने विदेशों में भी कार्य किया था। वे कब इंग्लैण्ड गये थे- इसका पता नहीं चलता, किन्तु कहा जाता है कि वे इंग्लैण्ड में श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ रहे। सावरकर से भी उनकी जान-पहचान थी। यह भी कहा जाता है कि फ्रांस की सरकार भी उनकी सहायता करती थी। भारत के बड़े-बड़े क्रान्तिकारियों से उनकी घनिष्ठता थी बंची अय्यर बड़े कार्यकुशल भी थे।
वे बड़ी सूझ-बूझ के साथ योजनाएं बनाया करते थे। वे काफी दिनों तक पांडिचेरी में भी रहे। पांडिचेरी में ही उन्होंने पिस्तौल से निशाना साधने का अभ्यास किया था। वे बड़ी निर्भीकता के साथ स्पष्ट कहा करते थे, “स्वराज्य भीख मांगने से नहीं अंग्रेजों की हत्या करने से मिलेगा।
कहा जाता है कि अय्यर ने ऐसे कई अंग्रेजों की सूची बनाई थी, जिनकी वे हत्या करना चाहते थे। वे इस कार्य का श्री गणेश टिनेबली जिले के कलक्टर ऐश की हत्या से करना चाहते थे, क्योंकि ऐश क्रान्तिकारियों को फंसाने और उन्हें सजा दिलाने में बड़ा तेज था।
अय्यर ने ऐश की हत्या तो कर दी, किन्तु वे उन अंग्रेजों की हत्या नहीं कर सके, जिनकी उन्होंने सूची बनाई थी। इसका कारण यह है कि ऐश की हत्या के पश्चात् ही वे गिरफ्तार कर लिये गये।
1922 ई० की 17 नवम्बर का दिन था, सन्ध्या के 6 बज रहे थे। ऐश मद्रास के रेलवे जंक्शन से कहीं जा रहा था। गाड़ी आने के पूर्व ही अय्यर ने उसकी हत्या कर दी। हत्या के समय शंकर भी उनके साथ मौजूद थे।
घटनास्थल पर ही अय्यर को बन्दी बना लिया गया। तलाशी लेने पर उनकी जेब में एक पर्चा पाया गया। पर्चे में तमिल में लिखा था- तीन हजार मद्रासी युवकों ने प्रतिज्ञा की है कि वे भारत में पंचम जार्ज के राज्य को समाप्त करके रहेंगे।
बंची अय्यर पर मुकद्दमा चलाया गया। मुकद्दमे में उन्हें फांसी की सजा दी गई। वे जेल के भीतर ही शूली पर चढ़ा दिये गये। उन्होंने शूली पर चढ़ने के पूर्व कहा था, “अंग्रेज विदेशी हैं, विधर्मी हैं। उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वे भारत पर राज्य करें। अंग्रेज चालाकियों और धोखे से भारत पर राज्य कर रहे हैं। भारत के प्रत्येक युवक को
चाहिए, अंग्रेजों के राज्य को समाप्त करने में योग दे। अंग्रेजों का राज्य समाप्त होने से ही इस देश में फैली गरीबी दूर हो सकती है।
बंची अय्यर शूली पर चढ़ कर सदा के लिए सो गये, किन्तु उनकी पाणी आज भी कानों में गूंज रही है। और सदा गूंजती रहेगी। व्यास जी ने महाभारत में लिखा है- “वीर और साहसी मनुष्य तो अपने कर्तव्य का पालन करके चले जाते हैं, किन्तु उनकी अमर वाणी उनके पश्चात् भी युगों तक प्रेरणा देती रहती है।
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