विधवा माँ किस प्रकार परिश्रम करके उसकी पढ़ाई का खर्चा चला रही है मित्र को पत्र (Vidhva maa kis prakar parishram karke uski padhai ka kharcha bhej chal rahi hai friend ko patra likho) :-
विधवा माँ किस प्रकार परिश्रम करके उसकी पढ़ाई का खर्चा चला रही है मित्र को पत्र

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सदर बाजार, झाँसी।
दिनाँक : 21 मार्च, 20XX
प्रिय मित्र अशोक,
सप्रेम नमस्कार ।
बहुत दिनों के पश्चात् कल तुम्हारा पत्र मिला। मुझे यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ नहीं है। कि तुम गणित में अनुत्तीर्ण हो गए, तुम्हारे लिए यह स्थिति अच्छी तुम्हे अच्छी तरह पता है कि जब तुम पाँच वर्ष के ही थे, तभी तुम्हारे पूज्य पिताजी की छाया तुम्हारे सिर से उठ गई थी। तब से तुम्हारी विधवा माँ ही पति की मृत्यु के शोक को झेलती हुई हृदय में अनेक अभिलाषाएँ लिए तुम्हारा पालन पोषण करती हुई तुम्हारी शिक्षा के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है।
क्या तुम्हें ध्यान नहीं कि वे तुम्हारे लिए प्रभात से सायं तक कितना परिश्रम करती हैं? घर के खर्चे के लिए और विशेषकर तुम्हारी पढ़ाई का खर्चा पूरा करने के लिए वे किस प्रकार सिलाई और कढ़ाई का काम करती रहती हैं? उन्होंने तुम्हारे लिए वस्त्रों की, पुस्तकों-कापियों की, विद्यालय शुल्क की और जेब खर्च की कमी न आने दी। क्यों? इस लिए कि एक दिन पढ़कर तुम उन की आकाँक्षाओं की पूर्ति करोगे ।
प्रियवर, माँ के इस परिश्रम को देखकर तुम्हें अत अपनी पढ़ाई का पूरा ध्यान देना चाहिए, जिससे कि आगे तुम्हें सफलता मिले। मुझे विश्वास है कि तुम अपनी विधवा माँ की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अवश्य ही निरन्तर प्रयत्नशील रहोगे।
शेष तुम्हारा पत्र आने पर।
तुम्हारा अभिन्न
कमलेश
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