आपके विद्यालय में नए शिक्षक आए उनकी विशेषताएँ बताते हुए अपने मित्र को पत्र (Vidyalaya me naye shikshak ke sambandh me mitra ko Patra)
आपके विद्यालय में नए शिक्षक आए उनकी विशेषताएँ बताते हुए अपने मित्र को पत्र

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सरस्वती मन्दिर,
झाँसी,
दिनाँक : 21 मार्च, 20XX
परम मित्र अशोक,
सप्रेम नमसकार।
आज ही तुम्हारा स्नेहपूर्ण पत्र प्राप्त हुआं तुम्हारी कुशलता और अध्ययन की प्रगति जानकर प्रसन्नता हुई। तुमने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि तुम्हारे कुछ शिक्षक गंभीरता से अध्यापन नहीं कराते, पर सर्वत्र ऐसा नहीं है। हमारे विद्यालय में ही एक नये अध्यापक आये हैं, जो तुम्हारी बात का अपवाद हैं। मैं उन्हीं का परिचय तुम्हें दे रहा हूँ। तुम जानते ही हो कि सरस्वती बाल मन्दिर यहाँ के विद्यालयों में श्रेष्ठ है।
यहाँ के सभी अध्यापक अपने-अपने विषय के पारंगत तो हैं, पढ़ाते भी बड़े मनोयोग और गम्भीरता से है; पर पिछले ही सप्ताह यहाँ श्री मुनीश्वर उपाध्याय नामक संस्कृत के एक नये अध्यापक आये हैं; उनकी अध्यापन शैली का तो जवाब नहीं। हम समझते थे कि संस्कृत तो केवल रटने का विषय है। उस संस्कृत के शब्द रूप और धातुरूप रटने में और अनुवाद के नियमों को समझाने में ही समय नष्ट होता है और पल्ले कुछ नहीं पड़ता। पर मुनीश्वर जी ने हमारी इस भ्रान्त धारणा को अपनी नवीन और आकर्षक शैली से संस्कृत को छात्रों के लिए सब से सुगम कर दिया है। उनकी अध्यापन शैली में विषय तो स्पष्ट हो ही जाता है। शब्दों का अर्थ भी स्वतः हृदयगंम हो जाता हैं और शब्द रूप और धातुरूपों को भी तोते की तरह रटना नहीं पड़ता, अपितु वे भी त्वरित ही स्मरण हो जाते हैं।
मुनीश्वर जी की अध्यापन शैली तो सुन्दर है ही उनका व्यक्तित्व भी बड़ा आकर्षक है, वे सदैव भारतीय वेश भूषा में ही रहते हैं। वक्तत्व कला में, चित्रकला में और अनेक प्रकार के खेलों में भी वे दक्ष हैं।
मित्र, इससे तुम्हें ज्ञात हो गया होगा कि सभी अध्यापक एक से नहीं होते। शेष शुभ। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
अभिन्न मित्र
कमलेश