विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध :- सृष्टि के रचयिता ने जिस सृष्टि की रचना की है, वह इतनी नियमपूर्वक चलती है कि उसके एक-एक क्षण का परिवर्तन निश्चित समय पर होता है। सूर्य और चन्द्रमा का चमकना, दिन और रात का होना, पेड़-पौधों पर फल-फूल लगना आदि। ये सब कार्य इतने नियमित और निश्चित समय पर होते हैं, जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है।
सृष्टि का समस्त कार्य एक निश्चित नियन्त्रण या ‘अनुशासन’ के अधीन चल रहा है। अनुशासन शब्द का अर्थ ही शासन (आदेश या नियन्त्रण) के अनुसार चलना है। अनुशासन एक व्यापक तत्त्व है, जो जीवन के सभी क्षेत्रों को अपने में समा लेता है। इसके अभाव में जीवन व्यवस्थित रीति से नहीं चल सकता। (student and discipline essay in hindi)
विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध (Vidyarthi or Anushasan Par Nibandh)
अनुशासन के रूप
अनुशासन के दो रूप हैं बाह्य और आन्तरिक शास्त्रीय, सामाजिक तथा शासकीय नियमों का पालन करना, गुरुजनों के उपदेश और आदेश को मानना बाह्य अनुशासन है। मन की समस्त वृत्तियों पर और इन्द्रियों पर नियंत्रण आन्तरिक अनुशासन है। यह अनुशासन का श्रेष्ठ रूप है। ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य नियन्त्रित जीवन व्यतीत करना है तो दूसरों के लिए आदर्श व अनुकरणीय बन जाता है। यद्यपि जीवन में पग-पग पर अनुशासन का बड़ा भारी महत्त्व है, तथापि विद्यार्थी जीवन में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है) विद्यार्थी को अपने भावी जीवन के निर्माण की तैयारी करनी होती है, जो बड़ी कठोर साधना है। इसके लिए विद्यार्थी का अनुशासित जीवन व्यतीत करना अनिवार्य है। अनुशासन ही विद्यार्थी जीवन की आधारशिला है। अनुशासन में रहने वाला बालक ही देश का सभ्य नागरिक बन सकता है और वही स्वयं को अपने परिवार को तथा स्वदेश को उन्नत बनाने में सहयोग दे सकता है।
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ब्रह्मचर्य अवस्था अनुशासन का पाठ
भारत के प्राचीन ऋषियों और आचार्यों ने जीवन को भार भागों में बाँटा था और इनमें से प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम को जीवन का मूल आधार माना था। इसमें विद्यार्थी भावी जीवन के निर्माण के लिए कठोर साधना करता था। गुरु का अपना चरित्र बड़ा ही प्रभावशाली और अनुकरणीय होता था। विद्यार्थी उसी के संरक्षण में रहकर पूर्ण अनुशासन से जीवन व्यतीत करना सीखता था। उसका अपने आहार-विहार, परिधान, निद्रा आदि सब पर पूर्ण नियन्त्रण रहता था। बालक के मन रूपी हीरे को साधना-यन्त्र द्वारा तराशा और चमकाया जाता था, ताकि बड़ा होकर वह समाज को प्रकाश दे सके) उसे उचित मार्ग पर ले जा सके। यही कारण था कि उस समय का विद्यार्थी सच्चरित्र, गुरु में अटूट श्रद्धा रखने वाला और बड़ों की आज्ञा का पालन करने वाला होता था और अपने भावी जीवन में राष्ट्र की उन्नति में महत्त्वपूर्ण योग देता था।
अनुशासन की आवश्यकता
आज समाज का जब चारों ओर से घोर नैतिक पतन हो रहा है, उसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला है, ऐसी दशा में आन्तरिक अनुशासन और व्यवस्था की कल्पना तभी साकार हो सकेगी, जब हमारे हृदय में परिवर्तन हो और हृदय परिवर्तन का श्रेष्ठ समय विद्यार्थी जीवन है। विद्यार्थी का मन एक सुन्दर पुष्प है, जिसे साधना रूपी धूप और विचार रूपी जल देकर पूर्ण विकसित करना होता है, ताकि उसकी सुगन्ध से सारा समाज सुगन्धित हो जाये। यदि यह पुष्प अनुशासनहीनता की दलदल में पड़ गया तो निश्चित ही इसकी दुर्गन्ध से सब परेशान हो उठेंगे।
आज छात्रों की अनुशासनहीनता देश के लिए एक ज्वलन्त समस्या है। विद्यालय में उद्दण्डता दिखाना, शिक्षकों का अपमान करना और परीक्षा में नकल करना और कराना; रोकने पर निरीक्षकों को पीटना या उनकी जान ले लेना; बसों, रेलों में बिना टिकट यात्रा करना, छात्राओं के साथ छेड़खानी करना उनकी अनुशासनहीनता के नमूने हैं। अतः विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए नैतिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। देश में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अत्यन्त त्रुटिपूर्ण है। छात्र को अपना भविष्य अन्धकारमय दिखाई देता है, फलस्वरूप वह हिंसा और तोड़-फोड़ पर उतारू हो जाता है।
देश के विद्यार्थी में अनुशासन की पुनः स्थापना के लिए शिक्षा पद्धति में परिवर्तन किया जाना चाहिए, ताकि उसमें विश्वास पैदा हो और वह एक सभ्य नागरिक के रूप में समाज के सामने आये। हमारे देश में प्रजातन्त्र शासन व्यवस्था है, जिसमें सत्ता प्रजा के हाथों में होती है, उसे ही राष्ट्र निर्माण के लिए भावी नीतियों का निर्धारण करना है। इसके लिए अनिवार्य है कि आज का विद्यार्थी अनुशासित होकर आगे बढ़े, ताकि उनमें सच्चरित्रता, धैर्य, साहस, उत्साह, विश्वास तथा कर्त्तव्यपरायणता की भावना जागे।
सैनिक अनुशासन को सदा से ही आदर्श अनुशासन माना गया है, परन्तु उसका मूल आधार भय और दण्ड व्यवस्था होते हैं। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए जनता में उच्च स्तर का अनुशासन होना जरूरी है। अतः विद्यार्थी जीवन में ही व्यक्ति में उनकी नींव पड़ जानी चाहिए। छात्रों में इस अनुशासन की स्थापना का भय या कठोर दण्ड व्यवस्था से नहीं, अपितु उनके हृदय में सोये हुए सद्विचारों को जगाकर की जा सकती है।
अनुशासन की क्षमता
अनुशासन जीवन को इतना आदर्श बना देता है कि अनुशासित व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा कुछ विशिष्ट दिखाई पड़ता है। उसका उठना-बैठना, बोलना, व्यवहार करना आदि प्रत्येक क्रिया में एकविशेष व्यवस्था या नियम की झलक मिलती है। अपनी समस्त वृत्तियों पर उसका पूर्ण नियन्त्रण रहता है। संसार में वह कुछ विशेष कर सकने की क्षमता रखता है। उसका सब ओर सम्मान होता है तथा सफलता उसके चरण चूमती दिखाई देती है। अनुशासनहीन मनुष्य संसार में लेशमात्र भी सफल नहीं होता, बल्कि वह अपने पतन के साथ-ही-साथ समाज का भी विनाश करता है। अनुशासित जीवन ही वास्तविक जीवन है, अनुशासनहीनता मौत है। आज के अधिकाँश छात्रों में इसका अभाव दिखाई दे रहा है। अतः उन्हें अनुशासन में रहना ही होगा।
उपसंहार
यदि आज के छात्र (विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध), जो देश के भावी कर्णधार हैं, अपने को अनुशासित रख लेंगे तो इसमें उनका अपना भी कल्याण होगा तथा वे अपने समाज व राष्ट्र का भी कल्याण कर सकेंगे।
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