वीणा का जादू: एक थी मौना। मीना अपनी मां के साथ एक गाँव में रहती थी। गांव में कोई रोजगार न होने के कारण उसके पिता घर से बाहर दूर शहर में रहते थे। मीना की मां को संगीत का बड़ा शौक था। उसके पास एक वीणा थी। मीना की मां वीणा बजाने में बहुत कुशल थी। उसकी कुशलता की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसने मीना को भी छोटी उम्र में ही वीणा बजाना सिखा दिया था।
वीणा का जादू

एक बार गांव में महामारी फैली। मीना की मां भी उसकी चपेट में आ गई। वह गंभीर रूप से बीमार हो गई। जब उसे अपना अंतिम समय निकट जान पड़ा तो वह मीना से बोली “बेटी, अब मेरा अंतिम समय आ गया है। यदि तुझे कभी मेरी जरूरत पड़े तो वीणा पर अपने हाथों से तीन बार थपकी देना, मैं तेरी सहायता के लिए आ जाऊंगी। ” इसके बाद मीना की मां स्वर्ग सिधार गई।
अपनी पत्नी के मरते ही मीना के पिता को उसकी देखभाल की चिंता सताने लगी। आखिर कितने दिन उसके पास गांव में रह सकते थे, एक न एक दिन तो काम-धंधे के लिए शहर में जाना ही था।
इसी सोच में दिन गुजर रहे थे कि एक दिन उसके पास एक गरीब औरत अपनी बच्ची के साथ आई। उसने मीना के पिता से काम मांगा। उनको भी मीना की देखभाल के लिए किसी औरत की जरूरत थी। मीना के पिता ने उस औरत को मीना की देखभाल का काम सौंप दिया और शहर चले गए।
उधर मीना के पिता शहर गए, इधर मीना की जान पर बन आई। नौकरानी बन कर आई औरत घर की मालकिन बन गई। मीना से घर का सारा काम कराना शुरू कर दिया। उसके पिताजी जो पैसे भेजते थे, सब के सब अपने कब्जे में रखती। अधिकांश अपने ऊपर खर्च करके मीना को रूखी-सूखी खाने को देती और फटे-पुराने कपड़े पहनने को ऊपर से उसे धमकी देती कि यदि अपने पिता को कुछ बताया तो वह उसे जान से मार देगी। बेचारी मीना क्या करती, सारा दिन आंसू बहाती रहती या कभी कामकाज से फुर्सत मिलती तो अपनी मां की वीणा बजाती। अपनी मां की तरह वह भी वीणा बजाने में कुशल थी।
समय बीतने लगा। चुड़ैल नौकरानी के अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई। अब तो उसकी बेटी भी मीना को डांटती फटकारती रहती थी। मीना जब वीणा बजाती थी तो वह मन ही मन बहुत जलती थी। उसने बहुत कोशिश की मगर वह मीना से अच्छी वीणा बजानी न सीख सकी।
एक बार की बात है कि वहां के राजा ने घोषणा करवाई कि राजधानी में वीणा वादन की एक बहुत बड़ी प्रतियोगिता होने वाली है। अतः जो लोग इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहे वह निश्चित दिन, निश्चित समय पर राजधानी पहुंच जाएं।
जब मीना ने इस प्रतियोगिता के विषय में सुना तो उसने अपनी नौकरानी से प्रतियोगिता में भाग लेने की इच्छा प्रकट की। परंतु उसने साफ इंकार कर दिया क्योंकि मीना के उस प्रतियोगिता में भाग लेने का मतलब था उसकी बेटी की हार। राजधानी जाने का समय भी आ गया। दोनों मां-बेटियां बड़े उत्साह से राजधानी जाने की तैयारी करने लगीं।
अब मीना धैर्य न रख सकी, ही नहीं सबका मन जीत लिया है। परंतु तुमने यह कला कहां से सीखी और तुम्हारी यह फटेहाल हालत क्यों है? मीना ने सुबकते सुबकते सारी कहानी राजा को सुना दी। अपनी पोल खुलते ही नौकरानी और उसकी बेटी ने भागने की कोशिश की। परंतु राजा ने उन्हें पकड़वा कर जेल में बंद करवा दिया।
फिर राजा ने मीना से कहा- “हम तुम्हारे पिताजी को तुम्हारे यहां होने की खबर भिजवा देते हैं। तब तक तुम हमारे साथ राजमहल में रह सकती हो। तुम्हारे पिताजी के बाहर रहने से ही तुम्हारी यह हालत हुई है। इसलिए हम तुम्हारे पिताजी को भी यहीं राजधानी में काम दे देंगे। “
मीना के पिता के राजधानी पहुंचते ही राजा ने उन्हें काम दे दिया तथा दोनों बाप-बेटी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।
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