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वीर अब्दुल हमीद का जीवन परिचय? वीर अब्दुल हमीद पर निबंध?

वीर अब्दुल हमीद का जीवन परिचय: वीर अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, सन् 1933 को गाजीपुर जिले के धामपुर ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम उस्मान था। एवं उनकी माता का नाम सकीना बेगम था। हिन्दुतान के वीर राष्ट्रभक्त सैनिकों की न कोई जाति होती है और न कोई धर्म उनकी जाति होती है हिन्दुस्तानी और धर्म होता है राष्ट्रभक्ति। अब्दुल हमीद (Vir Abdul Hamid Biography in Hindi) ऐसे ही जातिहीन और मजहबहीन राष्ट्रभक्त सैनिक थे।

वीर अब्दुल हमीद का जीवन परिचय

वीर अब्दुल हमीद का जीवन परिचय
Vir Abdul Hamid Ka Jeevan Parichay

Vir Abdul Hamid Biography in Hindi

जन्म1 जुलाई, सन् 1933
जन्म स्थानगाजीपुर जिले के धामपुर ग्राम
पिता का नामउस्मान
माता का नामसकीना बेगम
पत्नी का नामरसूलन बीबी

जन्म एवं परिचय

अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, सन् 1933 को गाजीपुर जिले के धामपुर ग्राम में हुआ था। आज इस ग्राम का नाम बदलकर उन्हीं के नाम पर हमीदधाम रख दिया गया है। उनके पिता श्री उस्मान, उनकी माता, उनकी पत्नी तथा चार पुत्र, एक पुत्री उसी गाँव में रहते हैं।

इनके बलिदान का समाचार देने जब लोग इनके पिता के पास गये तब उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से कहा, “मेरा जवान बेटा तो अब कोई नहीं है, किन्तु मेरे पोते देश के लिए इससे भी अधिक बलिदान देने के लिए तैयार रहेंगे।

कार्य क्षेत्र

साधारण शिक्षा प्राप्त कर वीर अब्दुल हमीद सेना में भर्ती हो गये। अपनी कुशलता के कारण वे शीघ्र ही लांस नायक बना दिये गये। सन् 1960 तक वे जम्मू कश्मीर में ही नियुक्त रहे। चीनी आक्रमण के समय वे नेफा के मोर्चे पर तैनात किये गये।

वहाँ उन्होंने सर्वप्रथम युद्ध का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। जब देश पर पाकिस्तान का भीषण हमला हुआ तब वे कसूर मोर्चे पर भेजे गये। यहीं उन्होंने वीरगति पाई थी।

वीरगति पाने से पहले अब्दुल हमीद ने जो काम किये उन्होंने उनका नाम इतिहास में अमर कर दिया है। उनकी वीरता के कामों को देखकर ही गाजीपुर जिले के धामपुर का नाम बदलकर हमीदधाम रख दिया गया है।

10 सितम्बर, सन् 1965 को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध आरम्भ हुआ। एक मोर्चा अमृतसर से पश्चिम की ओर छेमकरन के पास कसूर क्षेत्र में लगा था। इस मोर्चे पर पाकिस्तान ने अजेय समझे जाने वाले पैटन टैंक और बख्तरबन्द गाड़ियों का बड़ा जमाव लगा रखा था। इस जमाव का उद्देश्य अमृतसर पर अधिकार करना था।

इसी मोर्चे पर कम्पनी क्वार्टर मास्टर वीर अब्दुल हमीद की तैनाती हुई थी। वे रिकायललैस तोप संयुक्त जीप पर सवार थे। जब उन्होंने शत्रुओं के पैटन टैंकों को अपनी टुकड़ी की ओर बढ़ते हुए देखा तो उन्होंने प्राणों की बाजी लगाकर आक्रमण को रोकने की पूरी-पूरी कोशिश की। अब्दुल हमीद के चारों ओर गोले आग उगल रहे थे। ऐसी स्थिति में भी देश की रक्षा के लिए हमीद आगे बढ़ रहे थे।

आग उगलती हुई तोपों के बीच जाना जानबूझकर मौत के मुँह में जाना था, किन्तु अब्दुल हमीद जान की परवाह न कर आगे बढ़ते गये। वे बड़ी चतुराई से एक टीले की आढ़ में से अपनी जीप को पाकिस्तानी पैटन टैंकों के पास ले गये और पाकिस्तानी टैंकों पर गोलाबारी करना आरम्भ कर दिया।

एक के बाद एक टैंक को तोड़ते हुए उन्होंने तीन टैंक तोड़ दिये। चौथे टैंक को तोड़ने वाले ही थे कि पाकिस्तानी फौज का एक गोला उन पर गिरा और वे वीरगति को प्राप्त हो गये। अब्दुल हमीद के वीरता के काम को देखकर सेना में उत्साह आया और उन्होंने पाकिस्तानी सेना के आक्रमण को विफल कर दिया।

उपसंहार

अब्दुल हमीद के बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत के वीर किसी जाति का ध्यान न रखकर देश की रक्षा का ध्यान रखते हैं। साथ-ही-साथ अब्दुल हमीद की वीरता ने यह सिद्ध कर दिया कि विजय प्राप्त करने के लिए साधनों की इतनी आवश्यकता नहीं होती है जितनी वीरता और साहस की। राष्ट्रपति ने परमवीर चक्र की उपाधि से उन्हें सम्मानित कर देश के लिए बलिदान करने वालों में उत्साह और साहस का संचार करने की नई प्रेरणा प्रदान की।

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