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मधुमेह क्या है, मधुमेह के कारण, संभावित खतरे, सुझाव और यौगिक चिकित्सा

हृदय रोगों और कैंसर के बाद मधुमेह आज तीसरी घातक बीमारी बन गई है, तो आपको यह जानना बहुत ही जरूरी है की मधुमेह क्या है। विशेषत: हमारे समाज के सम्पन्न समझे जाने वाले वर्ग में। दुनिया भर में इसके रोगियों की संख्या समाज के समृद्ध होने के समानान्तर रूप से बढ़ती जा रही है। विभिन्न अनुमानों के अनुसार दुनिया भर में इसके रोगियों की संख्या विश्व जनसंख्या के 3% और 12% के बीच है।

सर्वाधिक सम्पन्न अमेरिका में मधुमेह (डायबिटीज-मेलाइटस) के रोगियों की अनुमानित संख्या कुल जनसंख्या के 12% से 19% के बीच है। गर्भवती अमेरिकन महिलाओं में से 2% से 5% के महिलाऐं इस रोग से पीड़ित हैं। अनुमानों के अनुसार भारत में मधुमेह (Diabetes) के रोगियों की कुल संख्या अमेरिका के रोगियों के मुकाबले दोगुनी है।

मधुमेह क्या है, मधुमेह के कारण, संभावित खतरे, सुझाव और यौगिक चिकित्सा

मधुमेह क्या है

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मधुमेह क्या है

मधुमेह रोग नहीं है, अपितु चयापचय (Metabolism) सम्बन्धी अनेक विकारों का समूह है । इसमें प्रमुख समस्या शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पाना होता है। हम इस रोग के विषय को दो हिस्सों में समझ सकते हैं। पहला तो यह है कि ग्लूकोज अथवा शुगर क्या है।

दूसरा शरीर द्वारा इसके उपयोग में क्या गड़बड़ी हो जाती है ? हम जो भी माँड (स्टार्च) या शर्करायुक्त पदार्थ अपने भोजन द्वारा ग्रहण करते हैं, वे कार्बोहाइड्रेट के नाम से जाने जाते हैं तथा पाचन प्रकिया द्वारा उन्हें पचाकर मुख्यतः ग्लूकोज में परिवर्तित कर दिया जाता है । यह ग्लूकोज आँतों द्वारा अवशोषित होकर यकृत (लीवर) में जाता है तथा वहाँ से आवश्यक मात्रा में रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में फैल जाता है। वही ग्लूकोज शरीर के सभी अंगों, कोशिकाओं एवं विभिन्न प्रक्रियाओं को चलाने हेतु ईधन के रूप में प्रयुक्त होता है।

कोशिकाएँ ग्लूकोज का उपयोग स्वतः नहीं कर सकती । ग्लूकोज को कोशिकाओं के भीतर प्रविष्ट करने के लिए इन्सुलिन नामक हार्मोन की आवश्यकता पड़ती है। यदि इन्सुलिन न हो अथवा अल्प मात्रा में हो तो कोशिकाऐं ग्लूकोज होते हुए भी ईंधन रूप में इसका उपयोग करने में असक्षम रहेंगी। अतः यह स्पष्ट है कि ग्लूकोज की चयापचयता (Metabolism) इन्सुलिन पर निर्भर है। यह हार्मोन (इन्सुलिन) पेंक्रियाज ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न किया जाता है। पेंक्रियाज एक बड़ी एवं चपटे आकार की ग्रन्थि है जो पेट के पीछे भाग में होती है। जब यह ग्रन्थि (पेंक्रियाज) रुग्ण अथवा तनावग्रस्त अवस्था के कारण ठीक से कार्य नहीं कर पाती तो इन्सुलिन का उत्पादन कम अथवा पूर्ण रूप से घट जाता है।

फलस्वरूप कोशिकाओं के द्वारा ग्लूकोज का उपयोग न हो पाने के कारण रक्त में ग्लूकोज अथवा शर्करा की मात्रा बढ़ने लगती है। इसी अनियंत्रित एवं उच्च रक्त शर्करा स्तर की अवस्था को मधुमेह कहा जाता है तथा मधुमेह के अधिकांश लक्षण रक्त में इसी उच्च शर्करा स्तर के कारण ही उत्पन्न होते हैं।

मधुमेह का पता लगने पर क्या करें

अक्सर इस रोग का पता किसी अन्य कारणवश करवाई गई डॉक्टरी जाँच पड़ताल के दौरान अथवा घावों के लम्बे समय तक न भरने की जाँच पर पता चलता है। पता लगने पर सबसे जरूरी बात है कि आप धीरज न छोड़ें। स्वामी विवेकानन्द और श्री लोकमान्य तिलक जैसे महापुरुष भी मधुमेह के रोगी थे, फिर भी उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग किया और सफलतापूर्वक जिये। इसलिये निराशा का बिल्कुल कोई कारण नहीं है।

समय रहते चेतावनी मिल जाने पर हम अधिक अनुशासित और सुव्यवस्थित जीवन जीने का अवसर पा जाते हैं अन्यथा आपा-धापी में जीते रहते । वास्तव में, समय से निदान एवं उपचार द्वारा इस घातक रोग का इलाज बड़े सीमित खर्चे से किया जा सकता है और हम चिन्तामुक्त हो सकते हैं।

मधुमेह होने के कारण :

इस रोग के मुख्य कारण हैं-आनुवंशिकी, निष्क्रिय जीवन शैली, मोटापा एवं मानसिक तनाव। वैसे तो चिकित्सा-विज्ञान को अब तक इसके सही कारणों का तो पता नहीं चला है, परन्तु उक्त कारण आरोपित किये जाते हैं। वास्तव में, यह अनुवंशिक या पैतृक रोग तो नहीं है, परन्तु इसका एक कारण भ्रूण के विकास में होने वाला अवरोध भी है, जिसके कारण बच्चा जन्म से ही निर्बल और अविकसित अग्न्याशय (पेंक्रियाज) के पैदा हो सकता है। इस कारण बच्चों में भी यह रोग पाया जाता है। रोग के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं प्रत्यक्ष रूप से इस रोग के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. गलत खान-पान, चीनी, मिठाईयाँ, घी तैल तथा मैदा से बनी चीजें, माँस, मछली आदि का अधिक सेवन करने से तथा असन्तुलित भोजन के कारण अग्न्याशय (पेंक्रियाज अथवा क्लोम ग्रन्थि) जब इन्सुलिन नहीं बना पाती है तो शरीर में शर्करा के अभाव में रासायनिक प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है और यह रोग उत्पन्न हो जाता है ।
  2. शारीरिक परिश्रम को कमी, खेलकूद का अभाव, व्यायाम का अभाव, लम्बे समय तक बैठे रहकर काम करना भी मधुमेह के मुख्य कारणों में है।
  3. मोटापा भी मधुमेह का एक महत्वपूर्ण कारण है। इसमें पेंक्रियाज (क्लोम ग्रन्थि) पर दबाव पड़ता है।
  4. दीर्घकालीन मानसिक क्लेश, भय, चिन्ता व अशान्ति से रडिनल ग्रन्थि व थाइराइड ग्रन्थियों क्षुब्ध हो जाती है तो मूत्र में शर्करा बनने लगता है।
  5. भोजन के तुरन्त बाद कठिन परिश्रम या सहवास करना, अति सहवास करना अथवा अधिक कार्य करने से क्लोम ग्रन्थि (पेंक्रियाज) कमजोर हो जाती है।
  6. वैसे तो किसी भी आयु में यह रोग हो सकता है लेकिन आयु बढ़ने के साथ-साथ रोग की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि आयु बढ़ने के साथ शरीर की चर्बी इन्सुलिन की प्रभावशीलता को कम करती है तथा इन्सुलिन उत्पादक वीटासेल्स की संख्या कम होती जाती है।

निष्क्रिय जीवन शैली और मानसिक तनाव, असंयमित, अनियमित, अव्यवस्थित जीवन शैली अथवा असामान्य मानसिक तनाव में जीने वाले व्यक्ति अधिक आसानी से इस रोग के शिकार हो जाते हैं।

मधुमेह के प्रकार

  1. बच्चों में मधुमेह इसे जुबिनाईल डायबिटीज कहते हैं।
  2. बड़ों के मधुमेह इसे मैच्योरिटी आनसेट डायबिटीज कहते हैं।

बच्चों का मधुमेह

कभी दुर्लभ कहलाने वाला रोग आज के आधुनिक समाज में व्याप्त दूषित रहन-सहन के कारण बच्चों में भी बढ़ता जा रहा है। यह रोग जेनेटिक, वायरल इन्फेक्शन, आधुनिक फास्ट फूड या अत्यधिक कष्टप्रद भावनात्मक पीड़ा एवं मानसिक आघात के कारण भी होता है। इससे इन्सुलिन हार्मोन का स्राव आंशिक या पूर्ण रूप से बन्द हो जाता है। इसके रोगी अल्पवयस्क, दुबले-पतले, संवेदनशील एवं अति तार्किक होते हैं।

बड़ों का मधुमेह

यह रोग प्रायः उन्हें होता है जो तनावग्रस्त, मोटे, शारीरिक रूप से कम क्रियाशील होते हैं तथा वे जिनके भोजन में शक्कर, स्टार्चयुक्त एवं वसायुक्त पदार्थों की अधिकता है। पाचन तंत्र पर पड़ने वाले इस दीर्घकालीन दबाव के कारण यकृत (लीवर) एवं अग्न्याशय (पेंक्रियाज) की ग्लूकोज नियंत्रण प्रणाली में शनैः-शनैः अवनति हो जाती है। इससे न केवल इन्सुलिन उत्पादन ही प्रभावित होता है बल्कि सभी शारीरिक ऊतक इन्सुलिन के प्रभाव के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं।

मधुमेह का उक्त प्रकार से वर्गीकरण करने के उपरान्त निम्नलिखित प्रकार से भी वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. टाइप एक

इन्सुलिन निर्भर डायबिटीज मेलिटस (I.D.D.M.) इसका प्रकोप अधिकतर बालकों एवं युवाओं पर होता है और इसका कारण पेंक्रियाज का वायरस द्वारा क्षतिग्रस्त होना है। इसमें इन्सुलिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं अतः इन्सुलिन का उत्पादन रुक जाता है और शरीर ऊर्जा के अपने सामान्य स्रोत रक्त ग्लूकोज से वंचित हो जाता है और विकल्प स्वरूप चर्बी का उपयोग करता है। रक्त ग्लूकोज प्रदत्त ऊर्जा शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन चर्बी से आने वाली ऊर्जा के साथ एसीटोन जैसे विषैले पदार्थों का उत्सर्जन भी होता है।

उक्त स्थिति में इन्सुलिन के इन्जेक्शन लेना हो एकमात्र उपचार है। खान पान पर पूर्ण नियंत्रण और औषधि सेवन के बावजूद, यह अक्सर घातक सिद्ध होता है। अतः अपने चिकित्सक की सलाह को पूरी तरह मानें और इन्सुलिन के इंजेक्शन लेते रहें।

2. टाइप दो

इन्सुलिन अ-निर्भर डायबिटीज मेलिटस (N.I.D.D.M.) इस श्रेणी में 95% से 98% रोगी आते हैं। विदेशों में चालीस एवं भारत में पैंतीस की आयु के बाद इसकी संभावना बढ़ जाती है। यह टाइप एक के मुकाबले कम घातक है। इस स्थिति में या तो शरीर में समुचित मात्रा में इन्सुलिन बन नहीं पाती। अथवा मात्रा में समुचित रहते हुए भी सुचारु रूप से अपना काम नहीं कर पाती । लगभग 30% रोगियों में इसको खान-पान नियंत्रण, व्यायाम और योगासनों से ही काबू में रखा जा सकता है। बाकी मरीजों को गोलियों का सहारा लेना पड़ता है और कुछ को इन्सुलिन की जरूरत भी पड़ सकती है।

मधुमेह के कारण

मधुमेह का रोग शरीर को दीमक लग जाने के समान है। यह वर्षों तक चुपचाप बढ़ता रहता है और रोगी को भान तक नहीं होता। अक्सर जब मधुमेह जनित किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तब इसका पता लगता है। फिर भी निम्न लक्षणों से सावधान रहना चाहिये-

  1. अधिक मात्रा में पेशाब होना, बार-बार पेशाब आना, रात में भी कई बार पेशाब के लिए उठना।
  2. ज्यादा प्यास लगना।
  3. भूख ज्यादा लगने पर भी शरीर का वजन घटते जाना।
  4. हाथ-पैरों का सुन्न होना अथवा इनमें झनझनाहट होना।
  5. टाँगों की माँसपेशियों में ऐंठन होना।
  6. कमजोरी एवं थकान महसूस होना।
  7. बार-बार फोड़े-फुन्सियाँ होना, घावों के भरने में अधिक समय लगना।
  8. धुंधला दिखाई देना, जल्दी-जल्दी चश्मे का नम्बर बदल जाना।
  9. प्रजनेन्द्रियों में खुजलाहट होना।
  10. कब्ज की शिकायत बनी रहना।
  11. मुँह में खले, माथा भारी, कामशक्ति क्षीण, रक्त विकार, उल्टी होना, शरीर में कम्पन, चेहरे पर झुर्रियाँ, पेशाब पर चींटी लगना एवं आत्म विश्वास की कमी।
  12. अल्पायु में हृदयाघात अथवा लकवा मारना।
  13. गर्भवती महिलाओं को बार बार गर्भपात होना। उनके बच्चे का जन्म के समय ज्यादा वजन हो सकता है अथवा बच्चा जन्मजात शारीरिक दोष, हृदय रोग आदि से पीड़ित हो सकता है।

अनियंत्रित मधुमेह के संभावित खतरे

आमतौर पर मधुमेह के रोगी को कोई प्रत्यक्ष कष्ट नहीं सताता, इसलिये वे लापरवाही बरतते रहते हैं और उनके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा लगातार सामान्य से अधिक बनी रहती है। ऐसा होने से शरीर के तकरीबन हर अंग को क्षति पहुँचती है और अन्तत: वह अनेक रोगों से घिर जाता है। उनमें से कुछ इस प्रकार-

1. लकवा

लम्बे समय तक अनियंत्रित रहने पर मधुमेह के रोगी की शिराओं की अन्दरूनी दीवारों पर चर्बी जमा होने लगती है और लकवे का खतरा बढ़ जाता है। स्नायु तंत्र भी क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे तलवों की संवेदनशीलता कम हो जाती है। अंत में माँसपेशियाँ भी कमजोर हो जाती हैं।

2. गुर्दों को क्षति

स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा मधुमेह के रोगी को गुर्दों की बीमारियाँ होने की संभावना 18 गुना अधिक है। इस रोग के कारण गुर्दों की कार्य क्षमता कम हो जाती है जिससे रक्त का समुचित संशोधन नहीं हो पाता। परिणाम स्वरूप रक्त में विषैले पदार्थों की मात्राएँ बढ़ती जाती है और अन्ततः डायलिसिस, गुर्दा (किडनी) बदलना पड़ता है, जिसका मतलब आर्थिक सर्वनाश।

3. आँखों को नुकसान

मधुमेह के रोगी को मोतियाबिंद अपेक्षाकृत जल्दी होता है। दृष्टि पटल (रेटिना) के क्षतिग्रस्त हो जाने की संभावना भी बढ़ जाती है जिससे आँखों की रोशनी भी जा सकती है।

4. कोथ (गैंग्रीन)

गैंग्रीन से ग्रसित अंग सड़ने लगता है और उसे काटकर अलग कर देने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रहता है। कई बार तो पूरी टाँग ही काटनी पड़ सकती है।

5. मूर्च्छा (कोमा)

औषधि, खान-पान और व्यायाम का उपयुक्त सन्तुलन न होने के कारण हाइपर ग्लाइसीमिया (कोमा) हो सकता है। ऐसा हो जाने पर रक्त में एसीटोन जैसे विषैले पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है और कीटोएसिडोसिस के कारण बेहोशी आ सकती है।

6. कीटोएसिडोसिस के लक्षण

इसके कारण मधुमेह के रोगी को बेहोशी तक हो सकती है। अतः रोग के लक्षण जानना जरूरी है। इसमें-

1भूख प्यास का बढ़ जाना
2बार-बार पेशाब लगना
3शरीर के वजन में एकाएक गिरावट आ जाना
4पेट में दर्द एवं उल्टी आना
5थकान बनी रहना
6साँस फूलना
7चिड़चिड़ापन हो जाना
8साँस से फलों की सी खुशबू आना
9एकाएक आँखें मूँद लेना
10निर्जलीकरण अर्थात् डीहाइड्रेशन हो जाना
मधुमेह क्या है

7. हाइपोग्लाइसीमिया (कोमा) के लक्षण

इसमें मधुमेह के रोगी में यह लक्षण प्रकट होने लगते हैं-

1सिर चकराना
2भूख का बढ़ जाना
3ज्यादा पसीना आना
4हाथ-पैरों का ठंडा होना
5बेचैनी, दिल की धड़कन का बढ़ जाना
6शरीर का ऐंठ जाना । ऐसी स्थिति में रोगी को तुरन्त कोई मीठी चीज खिलानी चाहिए
मधुमेह क्या है

हाइपर अथवा हाईपोग्लाइसीनिया जनित मूर्च्छ की स्थितियाँ दोनों ही खतरनाक हैं। ऐसा होने पर तुरन्त डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।

8. छत के रोग (इन्फेक्शन)

शरीर के अन्दर और त्वचा पर संक्रामक रोग हो जाने की विशेष संभावनाएं बढ़ जाती हैं। महिलाओं में मूत्र प्रणाली संक्रमित हो सकती है।

कमजोरी

माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। कभी-कभी नपुंसकता भी हो सकती है । शारीरिक ऊर्जा और स्फूर्ति के अभाव में जीवन नीरस लगने लगता है।

डायबिटीज / मधुमेह अन्य उपयोगी सावधानियाँ एवं सुझाव

  1. इंसुलिन के इन्जेक्शन रक्त में शुगर को कम करते हैं अतः हानिकारक सिद्ध होते हैं । साथ में अधिक व्यायाम एवं भोजन की मात्रा बहुत कम कर देने से यद्यपि शुगर की मात्रा कम हो जाती है पर उससे खतरा और बढ़ जाता है।
  2. योगाभ्यास में दूसरे सप्ताह से जब रक्त एवं मूत्र परीक्षण से यह पता चले कि शुगर की मात्रा कम हो रही है तो अपने चिकित्सक की सलाह से इन्सुलिन की मात्रा भी उसी अनुपात में कम कर देनी चाहिये।
  3. शुगर कम करने वाली औषधियाँ कम करके धीरे-धीरे योगाभ्यास क्रम के दौरान बन्द कर देनी चाहिये पर चिकित्सक की सलाह आवश्यक है।
  4. तेज चाल से तथा गहरी साँस लेते हुए प्रतिदिन खुली हवा में नियमित घूमना लाभकारी सिद्ध होता है।
  5. धूप-स्नान करना, शरीर की तेल से मालिश करना, अपना वजन कम करना तथा सही मुद्रा (पोज) में उठना-बैठना-चलना भी उपयोगी उपाय हैं।
  6. तनाव उत्पन्न करने वाले कारणों से सर्वथा बचना चाहिये । सदा प्रसन्न रहने का यथासंभव प्रयास करना चाहिये।
  7. सात्विक, शाकाहारी भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च, शक्कर की मात्रा कम हो, उसका ही सेवन करना हितकर है। चावल, आलू, मोठे पदार्थ बन्द कर देना चाहिये। महले तेल, दूध या उससे बनी वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करना उचित होगा।
  8. चोकरयुक्त आटे की चपातियाँ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ हल्की उबली अवस्था में लेनी चाहिये। सलाद एवं फल का उपयोग किया जा सकता है।
  9. टमाटर का सलाद, टमाटर की भाजी, टमाटर के रस को पानी की तरह प्रयोग करने से प्रारम्भिक अवस्था का मधुमेह 15 दिनों में दूर हो जाता है।
  10. भोजन करने के बाद पेशाब करने से इस रोग के होने की संभाव कम हो जाती है।
  11. दिन में तीन चार करेलों का रस पीयें। जामुन की गुठली अथवा हरे पत्ते पीसकर सुबह-शाम खायें तो लाभ मिलेगा।
  12. प्रातः खाली पेट सदाबहार के पत्ते चबायें।
  13. बीड़ी, सिगरेट, शराब का सेवन भूलकर भी न करें।
  14. नित्य प्रातः खाली पेट 4-5 गिलास पानी पीने के दूरगामी लाभ होते हैं। पानी न ज्यादा ठंडा हो और न गरम पानी पीने के बाद 4-6 बार सूर्य नमस्कार करने से रक्त शुद्ध होता है।
  15. अगर नित्य प्रात:काल कुंजल क्रिया की जाये तो बहुत अच्छा है। इसके लिए सात से दस गिलास पानी को हल्का गुनगुना करके थोड़ा नमक डालकर गटागट पी लें। उसके बाद पेट को दबाकर अथवा गले में उँगली डालकर सारे पानी को बाहर निकाल दें।

मधुमेह / डायबिटीज की यौगिक चिकित्सा

योग के अभ्यास से पैंक्रियाज ग्रन्थि अपनी अधमरी बीटा कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है। इनके सक्रिय होने का तात्पर्य है कि इन्सुलिन की उत्पादन क्षमता में सुधार तथा रक्त शर्करा के साथ समयानुसार सन्तुलन।

मधुमेह का यौगिक उपचार अपेक्षाकृत कुछ कष्टसाध्य है। अतः सबसे अच्छा यही होगा कि संसाधनयुक्त आश्रम जैसे भारतीय योग संस्थान दिल्ली या बिहार योग विद्यालय, गंगा दर्शन मुंगेर बिहार में कुछ दिन रहकर उपचार किया जाये। इलाज के प्रारम्भिक काल में कम से कम एक महीने का समय देना चाहिये।

प्रत्येक रोगी के लिए योग साधना एवं अभ्यास रोग की अवस्था पर निर्भर करता है। निम्नलिखित अभ्यास क्रम को सभी रोगियों के लिए अनिवार्य नहीं समझना चाहिये । वरन्, उनको आधार मानकर अन्य रोगियों के लिए उनकी जरूरत एवं क्षमता अनुसार अभ्यासक्रम योगोपचार विशेषज्ञों के परामर्श से अपनाना चाहिये । सामान्य रूपरेखा निम्नलिखित है-

आसन

  1. सूर्य नमस्कार – इसका अभ्यास सभी ग्रन्थियों को सुचारु ढंग से चलाने तथा प्राण-शक्ति के उत्पादक होने के कारण चयापचय (मेटाबोलिज्म) को पुनः सन्तुलित करता है।
  2. ताड़ासन – यह मलाशय व आमाशय की माँसपेशियों को विकसित करता है और आँतों को फैलाता है। शरीर के तनाव को दूर करके शरीर को शिथिल करता है और रक्त के संचालन में तेजी लाता है। स्नायु मण्डल को सक्रिय रखकर शरीर को स्वस्थ बनाता है।
  3. योग मुद्रा – पाचन यंत्र पुष्ट होते हैं, आमाशय, यकृत (लीवर) क्लोम (अग्न्याशय या पॅनक्रियाज) प्लीहा व छोटी आँत प्रभावित होते हैं। कब्ज टूटती है।
  4. पश्चिमोत्तानासन – यह आसन उदर संस्थान के सभी अंगों पर विशेष दबाव डालता है व इस भाग की समस्त बीमारियाँ जैसे मधुमेह को अच्छा करता है तथा गुर्दों (किडनी/वृक्क), क्लोम (पेंक्रियाज) आदि को क्रियाशील बनाता है।
  5. भुजंगासन – यह आसन उदर के सभी अंगों विशेष रूप से जिगर (लीवर), गुर्दे (लीवर), क्लोम (पैंक्रियाज) के कार्यों को व्यवस्थित करता है। चुल्लिका ग्रन्थि (पैराथाइराइड ग्रंथि) की क्रिया को नियमित करता है जिससे सम्पूर्ण शरीर की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया में सन्तुलन आता है।
  6. मत्स्यासन – उदर सम्बन्धी सभी रोगों के लिए उपयोगी है।
  7. गोमुखासन – यह आसन मधुमेह के लिए उपयोगी आसन है। यह किडनियों को उत्प्रेरित करता है।
  8. शशांकासन – इस आसन से सभी नस-नाड़ियाँ स्वाभाविक स्थिति में रहती हैं। शरीर के तनाव को दूर करता है।
  9. वातायनासन – अतिरिक्त माँसपेशियों को कम करता है। किडनी की क्रिया को सामान्य रखता है।
  10. पवनमुक्तासन – कब्ज को दूर करता है, अतिरिक्त चर्बी को कम करता है, वायु के प्रकोप को रोकता है।

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