Yoga For Slip Disc:- आजकल पीठ दर्द को बहुत ही सामान्य बीमारी के रूप में माना जाने लगा है। क्यों की स्लिप डिस्क क्या है इसके बारे में पता नहीं होता और स्लिप डिस्क की एक्सरसाइज क्या यह भी जानना बहुत ही जरूरी है। आँकड़ों से पता चला है कि प्रत्येक वर्ष सिर्फ अमेरिका में ही दीर्घकालीन पीठ दर्द से पीड़ित नये रोगियों की संख्या लगभग दो करोड़ होती है, जबकि इंग्लैंड में उसका दूसरा स्थान है क्योंकि वहाँ श्वसन सम्बन्धी तकलीफें जैसे : सर्दी, खाँसी, फ्लू इत्यादि का स्थान प्रथम है।
पीठ दर्द का बहुत सरल, सहज और प्रभावशाली इलाज होते हुए भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इसको जटिल साबित कर दिया है, जिसकी वजह से अधिकांश डॉक्टर पीठ दर्द के मरीज को प्रभावशाली ढंग से इलाज करने में असमर्थता का अनुभव करते हैं। फलस्वरूप मरीज प्रायः भाग्यवादी और कष्टदायक स्थिति को मरणान्तक समझ कर उसे उसी रूप में स्वीकार करने के लिए विवश हो जाता है।
स्लिप डिस्क क्या है (Slip Disc Kya Hai)

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हमारे विचारानुसार इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिये, क्योंकि योग कष्टप्रद स्थिति में सरल प्रभावशाली और स्थाई उपचार प्रदान करता है। इस रोग के कारणों आदि पर चर्चा करने से पहले पाठकों को शरीर संरचना समझ लेना आवश्यक है क्योंकि तभी वे उपचार आदि प्रक्रिया को सरलता एवं स्पष्टता से समझ सकेंगे।
शरीर संरचना
मनुष्य का मेरुदण्ड एक पोली नली है जो 33 अस्थियों से बनी होती है। इसी को रीढ़ की हड्डी या कशेरुका या वर्टिब्रा कहते हैं। यह कशेरुकाऐं एक के ऊपर एक रखी रहती हैं जो मजबूत मेरुदंडीय माँसपेशियों से जकड़ी रहती हैं। हर दो कशेरुकाओं के बीच एक प्रकार की गद्दी (डिस्क) की तरह जोड़ होता है। इसमें तैलीय तरल पदार्थ भरा रहता है जो चिकनाई प्रदान करता है। यह तेल भरी गद्दियाँ शाक एवजार्वर (आघात अवरोधक) का काम करती हैं जिसके कारण मस्तिष्क, मेरुरज्जू (स्पाईनल कॉर्ड) तथा सारे आन्तरिक अवयव चलने-फिरने की स्थिति में धक्कों के आघातों से बचे रहते हैं। इन गद्दियों में जैली के समान एक प्रकार का चिकना तरल पदार्थ भरा रहता है और यह सभी अस्थियाँ अस्थि बन्धों (लिंगामेन्ट्स) से अच्छी तरह जकड़कर बँधी रहती है।
स्लिप डिस्क क्या है और क्यों होता है?
कमर के निचले हिस्से में जब अत्यधिक दबाव पड़ता है तो उसकी डिस्क (गद्दी) में दरार पड़ जाती है तथा वह टूट जाती है। इसी अवस्था को स्लिप डिस्क कहते हैं। डिस्क (गद्दी) के टूटने से उसका चिपचिपा पदार्थ बाहर बहकर किसी स्नायु पर दबाव डालने लगता है जिसके कारण असहनीय पीड़ा होती है। यह पीड़ा स्थाई बन जाती है तथा कमर की 4-5 नम्बर की कशेरुकाओं (रीढ़ की हड्डी (वर्टिब्रा) या उसके ऊपर-नीचे की कशेरुकाओं में घूमती रहती है।
यह बीमारी अधिकांशतः उन लोगों को अधिक होती है जो ज्यादा समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करते हैं या फिर जिनके कमर के आस-पास के अस्थि बन्ध (लिगामेंट्स) दुर्बल या कमजोर होते हैं। यह रोग झुककर भारी बोझ उठाने से भी पनपता है। यह बेलचा चलाने या बगीचे से खरपतवार निकालते समय भी हो सकती है। कभी-कभी मोटरगाड़ी चलाते रहने के कारण उसका क्लच बराबर दबाने छोड़ने के कारण भी होती है।
सायटिका
इसमें बड़ा ही चुभने वाला दर्द होता है जो कमर की आखिरी तीन कशेरुकाओं यौगिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा (रीढ़ की हड्डी या वर्टिब्रा) एवं नितम्बीय दो कशेरुकाओं के बीच के क्षेत्र से बढ़ते हुए नीचे पैर के पिछले हिस्से तक जाता है। फटी हुई गद्दियों (डिस्क) से जो तरल पदार्थ बहकर निकल आता है, वह उस स्थान से निकलने वाली सायटिका स्नायु (सायटिका नर्व) पर दबाव डालता है और उसके कारण तीव्र दर्द होता है।
सायटिका स्नायु कमर से होकर दोनों पैरों के पिछले हिस्से से जंघा एवं टखनों से होते हुए एड़ी तक जाती है। यही कारण है कि सायटिका में नितम्ब, जाँघ तथा टखने में दर्द मालूम होता है। यद्यपि दर्द का मूल कारण कमर के क्षेत्र में होता है। इस स्थिति में अगर रोगी लेटे नहीं और चलता फिरता रहे तो पैर के निचले हिस्से में और अधिक तनाव बढ़ जिसके कारण दर्द के बढ़ने की संभावना हो जाती है।
जब किसी व्यक्ति को इस प्रकार की पीठ का दर्द हो तो रोगी को शीघ्र ही लेट जाना चाहिये। इस समय दर्द के स्थान के आस-पास की माँसपेशियाँ बहुत शीघ्र संकुचित हो जाती हैं। प्लास्टर या खपच्चियाँ उस स्थान को सुरक्षात्मक स्थिरता प्रदान करने के लिए बाँध दी जाती हैं जो उस स्थान की गतिविधियाँ रोक देती हैं। तीव्र दर्द उठने पर दर्द निवारक औषधि देकर रोगी को लकड़ी के तख्त पर रुई का पतला गद्दा बिछाकर लिटा देना चाहिये।
स्लिप डिस्क एक्सरसाइज
यदि लम्बे समय तक स्लिप डिस्क की बीमारी बनी रहे तो शल्य चिकित्सा के द्वारा उपचार करने का चलन है। शल्य चिकित्सक टूटी-फूटी डिस्क को निकालकर मेरुदण्ड की दोनों अस्थियों को जोड़ देते हैं। इस व्यवस्था से रोगी को राहत तो मिलती है परन्तु यह स्थाई नहीं होती। कभी-कभी इसमें दर्द उभर आता है, ऐसे में स्थिति और बिगड़ जाती है।
प्रारम्भिक अवस्था में चिकित्सक रोगी को कमर में बाँधने के लिए एक प्रकार की बेल्ट देते हैं पर यह भी स्थाई उपचार नहीं है। दर्द और सूजन वाली जगह पर बारी-बारी से गरम और ठंडी पट्टी देते रहने से भी तत्कालिक आराम मिलता है। हल्की मालिश भी आराम पहुँचाती है।
आसन
अधिक पीड़ा के समय रोगी को तख्त के ऊपर पेट के बल लिटा देना चाहिये। इस समय निम्नलिखित आसनों में सोना लाभदायक होता है। दर्द में राहत मिलती है.
अत्यधिक दर्द के समय:
अर्द्धासन

विधि- पहले पेट के बल लेट जाइये। अब दोनों हाथों को सामने की ओर सिर को स्पर्श करते हुए फैला दीजिये तथा शरीर को पूर्ण रूप से ढीला छोड़ दीजिये।
श्वास- सहज, स्वाभाविक एवं लयपूर्ण ढंग में लेते छोड़ते रहें। रोग के उपचार हेतु जितनी देर तक संभव हो, इस स्थिति में लेटे रहें। अपना ध्यान साँस पर रखें।
ज्येष्ठिकासन

विधि- पैरों को सीधे रखते हुए पेट के बल लेट जायें। अब अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे में फँसाकर सिर के पिछले भाग पर रख लीजिए। इस आसन में भी शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। सहज, स्वाभाविक एवं एक लय में सांस लेते हुए उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करें।
जब दर्द में कमी महसूस होने लगे
मकरासन

विधि- पेट के बल सीधे लेट जाइये। अब अपनी कुहनियों के सहारे सिर एवं कन्धों को उठायें और अपनी ठुड्डी को हथेलियों पर टिकाकर रखें। इसमें भी साँस को सहज, स्वाभाविक एवं लय लेते हुए उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। इस आसन को जितनी देर तक कर सकें करें, लाभ मिलेगा।
भुजंगासन

विधि- पेट के बल लेट जायें पैरों को सीधा एवं लम्बा फैला दीजिये। माथा पृथ्वी पर टिका दें। अब अपनी हथेलियों को पट रखकर कन्धों के बराबर स्थिर करें। कोहनियाँ एवं हथेलियाँ जमीन पर सटी रहें। अब धीरे-धीरे सिर व कन्धों को जमीन से ऊपर उठायें तथा सिर को जितना पीछे की ओर ले जा सकें ले जायें अब साँस लेते हुए धीरे-धीरे नाभि से आगे वाले भाग को उठा दें। कोहनियाँ पृथ्वी से थोड़ी उठेंगी।
ध्यान रहे कि पीछे से एड़ियाँ नहीं खुलनी चाहिये। हाथों पर दबाव कम से कम रहे कुछ क्षण इस स्थिति में रुककर साँस छोड़ते हुए वापिस पूर्व अवस्था में आ जायें। बायाँ कान जमीन से लगाकर शरीर को पूरी तरह से ढीला छोड़ दें पूरी प्रक्रिया में ध्यान कण्ठ (विशुद्धि चक्र) पर रहेगा इसको फिर दोहरायें
चेतावनी- जो लोग पेट के घाव, हर्निया, आँत की बीमारी से पीड़ित हैं। वे इस आसन को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ होने तक न करें।
उक्त आसनों का अभ्यास होने के बाद
जब उक्त आसन अच्छी तरह होने लगे तो क्रमश: निम्नलिखित आसनों का अभ्यास शुरु करना चाहिये-
शलभासन

विधि- पेट के बल लेट जायें। एड़ियाँ मिला लें, पंजे लेटे हुए, चेहरे को सामने कर ठोढ़ी को जमीन पर टिका दें। दोनों हाथों को इस प्रकार जंघाओं के नीचे रखें कि हथेली ऊपर की ओर रहें। दोनों कोहनियाँ मिली हुई और पेट के नीचे रखें।
अब पीछे से टाँगों को सीधा रखते हुए श्वास भरते हुए नाभि से नीचे के भाग को तानते हुए ऊपर उठा दें। टाँगें मुड़ें नहीं और मुख भी ऊपर नहीं उठे। कुछ क्षण तक इस स्थिति में रुकने के बाद साँस छोड़ते हुए वापस अपनी पूर्व अवस्था में आ जायें । हाथ को बाहर निकाल दें । दायाँ कान जमीन पर लगाकर शरीर ढीला छोड़ दें। पूरी प्रक्रिया में ध्यान अनाहत चक्र (हृदय) पर रहेगा।
सर्पासन
विधि- पेट के बल लेटें, एड़ी, पंजे मिलाकर शरीर को तानें। हाथों को पीठ के ऊपर रखकर एक हाथ से दूसरे हाथ की कलाई पकड़कर पीछे की ओर तानें। सिर और सीने को जमीन से ऊपर उठायें, सिर को पीछे की ओर झुकाइये।
धनुरासन

विधि- पेट के बल लेटें। घुटनों तक अपनी टाँगों को मोड़ें । हाथों से अपने टखनों को पकड़ें। अब श्वास भरते हुए जाँघों के साथ सिर और सीने को जमीन से जितना ऊपर ले जा सकें ले जायें। धनुष की स्थिति की अवस्था में झूले की तरह झूलें। केवल पेट ही जमीन को छूता रहेगा। पूरी प्रक्रिया में ध्यान उदर संस्थान या पीठ पर रखें।
उष्ट्रासन

विधि- वज्रासन में बैठें। अब घुटनों पर खड़े हो जायें। घुटनों के बीच कन्धों के बराबर फासला रखें। दोनों हाथों को कमर पर इस प्रकार रखें कि उँगलियाँ पेट की तरफ हों और अँगूठे रीढ़ पर मिलें। साँस भरते हुए गर्दन को अधिक से अधिक मोड़ते हुए पीछे ले जायें, फिर हथेलियों को तलवों पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रुकें फिर सांस छोड़ते हुए वापिस आ जायें। पूरी प्रक्रिया में ध्यान रीढ़ की हड्डी पर रहेगा।
मेरु वक्रासन
विधि- पैरों को सीधे सामने फैलाकर बैठ जायें नितम्बों के पीछे दोनों ओर दोनों हाथों को बाजू में रखिये अब बाँयें हाथ को दाहिनी ओर दाहिने हाथ के बगल में और बाँयें हाथ को दाहिने घुटने के समीप बाहर की ओर ले जायें। सिर और कमर दाहिनी ओर मोड़िये। फिर इस प्रक्रिया को विपरीत दिशा में करें।
शरीर को मोड़ने से पहले साँस भर लें। पूर्व स्थिति में आने पर सांस बाहर निकाल दें।
भूनमनासन
विधि- पैरों को सामने सीधे फैलाकर बैठें, मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को बायें नितम्ब के बाजू में रखिये अब ऊपरी धड़ को बाँयी और 90 डिग्री पर मोड़िये, नितम्ब न उठें।
शरीर को झुकाकर नासिका से भूमि का स्पर्श करें। कमर और मुख को प्रारम्भिक स्थिति में ले आइये। अब इस पूरी प्रक्रिया को दूसरी ओर भी करें। प्रत्येक ओर अधिक से अधिक दस बार करें। उक्त अभ्यासों को नित्य प्रति करना चाहिये। आसनों को पाँच-पाँच बार करने के बाद अर्द्धासन में आराम करना चाहिये। ये सभी आसन पीठ के निचले भाग के लिए थे। अब कन्धों एवं ऊपरी पीठ के लिए निम्नलिखित आसनों का अभ्यास करना चाहिये।
कन्धों और ऊपरी पीठ के लिए :
द्विकोणासन

विधि- पैरों के पंजों को मिलाकर खड़े हो जायें। हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर अँगुलियों को आपस में फँसाकर आगे झुकाते हुए भुजाओं को ऊपर की ओर तानें। सांस को सीधे खड़े होने की स्थिति में भरें, फिर झुकते हुए साँस छोड़ें। इस स्थिति में कुछ देर रुककर फिर सामान्य स्थिति में आ जायें।
गरुड़ासन

विधि- खड़े होकर बाँयें पैर को दाहिने पैर के चारों ओर लपेटिये। बाँयी जाँघ दाहिनी जाँघ के सामने रहे और बाँया पैर दाहिने पैर की पिंडली पर रहे। अब दोनों हाथ को कोहनियों के मध्य से मोड़िये। बाँये हाथ को दाहिने हाथ पर इस प्रकार लपेटिये कि वे प्रार्थना की मुद्रा में आ जाये। कुछ देर इस मुद्रा में रुककर फिर पूर्वावस्था में आ जायें इस प्रक्रिया को अब दूसरे पैर हाथ से करें। ध्यान ललाट के मध्य बिन्दु पर रखें।
गोमुखासन

विधि- बाँयें पैर की एड़ी को दाहिने नितम्ब के समीप रखिये दाहिने पैर की बाँयी जाँघ के ऊपर रखिये। घुटने एक-दूसरे के ऊपर रहें। बाँयें हाथ को पीठ के पीछे ले जाइये दाहिने हाथ को भी दाहिने कन्धे पर पीछे ले जाइये। हाथों को परस्पर बाँध लीजिये। धड़ सीधा रहे। नेत्रों को बन्द रखें।
मार्जरी आसन

विधि- वज्रासन में बैठें। अब घुटनों के बल खड़े होकर हाथों को सामने फर्श पर इस प्रकार जमा दीजिये कि वे ठीक कन्धों के नीचे सीधे रहें। रीढ़ की हड्डी को नीचे की ओर झुकाते हुए सिर को ऊपर उठाइये। अब सिर को नीचे लाते हुए रीढ़ को धनुषाकार रूप में ऊपर उठाइये। रीढ़ को फिर नीचे और सिर को ऊपर ले जाइये। भुजाओं को लम्ब रूप में सीधा रखिये। साँस रीढ़ को नीचे झुकाते हुए लेनी है और रीढ़ को धनुषाकार बनाते समय साँस छोड़िए।
विशेष – भुजंगासन के बाद शलभासन और उष्ट्रासन के बाद धनुरासन करना कमर दर्द के लिए लाभदायक है। सामने झुकने वाले आसनों को कम से कम छः महीने के लिए बंद रखना चाहिए अन्यथा रोग पुनः प्रकट हो सकता है। रोग जब बिल्कुल दूर हो जाये तो किसी कुशल योगाचार्य के मार्गदर्शन में आगे झुकने वाले आसनों का अभ्यास करना चाहिये।
हर आसन के बाद यदि थकावट महसूस हो तो शिथिलीकरण अवश्य कर लें।
अजपा जप
सभी मेरुदण्डीय रोगों में, विशेषकर स्लिप डिस्क एवं सायटिका में अजपा जप अर्थात् मूलाधार (गुदा-स्थान) से आज्ञा चक्र (दोनों भवों के बीच ) एवं आज्ञा चक्र से मूलाधार चक्र तक श्वास की क्रिया को पूरी चेतना के साथ करना लाभप्रद है।
इस प्रक्रिया में ‘सोहम् का तप स्वाभाविक रूप से होता है। गहरी लम्बी साँस लेते समय ‘सो’ का मानसिक उच्चारण और साँस छोड़ते हुए ‘हम्’ का मानसिक उच्चारण करना चाहिये। अभ्यास के समय अनुभव करिये कि पीठ की कड़ी माँसपेशियों को धीरे धीरे तनाव रहित हो रही है। उस क्षेत्र में शुद्ध रक्त प्रवाहित हो रहा है। अजपा जप का अभ्यास जितनी बार, जितनी देर तक किया जाये तो रोग जल्दी दूर होता है। उचित आहार-बिहार एवं रहन-सहन अपनाकर इस योग चिकित्सा की यौगिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रक्रिया को नियमपूर्वक किया जाये तो रोगी को इस यौगिक चिकित्सा से पर्याप्त लाभ मिल सकता है।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।