यदि मैं प्रधानाचार्य बन जाऊं पर निबंध? विद्यालय का प्रधानाचार्य होता पर निबंध?

यदि मैं प्रधानाचार्य बन जाऊं पर निबंध :- विद्यालय एक परिवार है। परिवार के जैसे अनेक सदस्य होते हैं और उस का एक प्रमुख नेता होता है, इसी प्रकार छात्र व शिक्षक विद्यालय परिवार के सदस्य तथा प्रधानाचार्य (yadi me pradhanacharya ban jaun par nibandh) उस परिवार का प्रमुख होता है। यह उसका संचालक व नियंता है। मेरे मन में भी अभिलाषा जागृत होती है कि शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् क्यों न मैं भी विद्यालय का प्रधानाचार्य बन जाऊँ? यदि संयोगवश मैं प्रधानाचार्य बन गया तो अपने विद्यालय के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील हो जाऊँगा।

यदि मैं प्रधानाचार्य बन जाऊं पर निबंध

यदि मैं प्रधानाचार्य बन जाऊं पर निबंध

अनुशासन की स्थापना

आज अपने विद्यालय में सबसे बड़ी समस्या अनुशासन की है। प्रधानाचार्य बनते ही मैं अनुशासन स्थापित करने पर पूरा ध्यान दूँगा। छात्र व शिक्षक समय मैं पर विद्यालय पहुँचे, इसके लिए मैं स्वयं निश्चित समय से पन्द्रह मिनट पूर्व विद्यालय में पहुँचूँगा। मेरे समय से पूर्व पहुँचने पर अन्य शिक्षक भी समय पर पहुँचेंगे/क्योंकि बड़े लोग जैसा आचरण करते हैं, छोटे भी वैसा ही करते हैं “यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तेवेतरे जनाः।

यदि न पहुँचेंगे तो मैं उन्हें प्रेम से समय पर आने का आग्रह करूंगा। जब मैं और मेरे अध्यापक समय पर विद्यालय आयेंगे तो छात्र भी निश्चित ही समय पर आयेंगे। जो छात्र उपस्थिति घंटी पर कक्षा में न होगा, उसकी अनुपस्थिति लगा दी जायेगी। मैं समझता हूँ इस प्रकार विद्यालय की उपस्थित निश्चित और नियमित हो जायेगी।

छात्र प्रायः किसी-न-किसी बहाने से कभी पानी के, कभी लघुशंका के और कभी किसी शिक्षक द्वारा बुलाये जाने के बहाने से श्रेणियों से बाहर निकलकर घूमते रहते हैं। मैं प्रधानाचार्य बनते ही इनकी निगरानी रखूँगा और व्यवस्था करूँगा कि घण्टी समाप्त न होने तक कोई छात्र कक्षा से बाहर न आये।

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शिक्षकों की ढिलाई

छात्रों का ही नहीं कुछ शिक्षकों का भी स्वभाव बन गया है कि वे जमकर श्रेणी में नहीं बैठते। वे मॉनीटर को श्रेणी में पाठ पढ़ाने के लिए कहकर किसी अन्य शिक्षक को भी साथ लेकर बातचीत में मग्न हो जाते हैं। अध्यापक की अनुपस्थिति में श्रेणी में कोलाहल होता है, छात्र एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते हैं और गाली-गलौच करते हैं, मेज-कुर्सियाँ तोड़ते हैं, उन्हें बजाते हैं, या गन्दे फिल्मी गीत गाते रहते हैं (इससे पास वाली श्रेणियों के अध्ययन में बाधा पड़ती है। मैं ऐसे अध्यापक को आग्रह पूर्वक इस प्रवृत्ति को त्यागने को कहूँगा।

एक ही गण-वेश

हमारे विद्यालय में निर्धन व धनी सभी प्रकार के छात्र हैं। घनी तो अपनी अच्छी-सी वेश-भूषा में आते हैं और निर्धन सामान्य बेश-भूषा में इससे धनी विद्यार्थियों में अहंभाव रहता है और निर्धनों में आत्म-हीनता की भावना जागती है। यदि मैं प्रधानाचार्य बन जाऊँगा तो सभी छात्रों को एक ही गणवेश में आना अनिवार्य कर दूँगा। एक जैसे गण-वेश से अनुशासन सुदृढ़ होगा, छात्रों में मैत्री भाव भी अधिक विकसित होगा और किसी भी छात्र में हीन भावना अथवा उच्चता की भावना जाग्रत ने होगी।

निर्धन छात्रों की सहायता

मैं प्रधानाचार्य बनने पर निर्धत छात्रों को विद्यालय ओर से पुस्तकें और गण-वेश दूँगा। इसके साथ ही शुल्क-मुक्ति भी उन्हीं को दूँगा जो वास्तव में योग्य, उसके उचित अधिकारी तथा निर्धन होंगे।

नैतिक और शारीरिक शिक्षा

मेरा प्रयास होगा कि छात्रों में उत्तम संस्कार जगें संस्कार सम्पन्न छात्र ही अपने कुल और देश का गौरव होते हैं। अतः मैं प्रधानाचार्य बनने पर सप्ताह में एक दिन विद्यालय में नैतिक शिक्षा का पाठ अनिवार्य कर दूँगा जिसमें शिक्षक बारी-बारी से छात्रों को धार्मिक व ऐतिहासिक कथा-कहानियों के द्वारा चारित्रिक शिक्षा देंगे। छात्रों के चरित्र की उन्नति के लिए मैं पूर्ण सचेष्ट रहूँगा। इसके साथ प्रत्येक शनिवार को अर्धाविकाश के अनन्तर बाल सभा का आयोजन भी करूंगा, जिसमें छात्र कहानियाँ, कविताएँ व चुटकले आदि सुनावें और विभिन्न विषयों पर भाषण देने का अभ्यास भी करें। इससे छात्रों में नैतिकता, सदाचार, विनम्रता तथा विवेक आदि सद्गुणों का विकास होगा।

मैं अपने छात्रों के लिए व्यायाम और खेलकूद भी अनिवार्य कर दूँगा ताकि बौद्धिक विकास के साथ ही उनका शारीरिक विकास भी होता रहे मेरा प्रयास यह भी रहेगा कि छात्र पुस्तकालय का उपयोग करें, जिससे उनके ज्ञान में अधिक वृद्धि हो ।

उपसंहार

आज बिद्यार्थी परीक्षा से नकल आदि के अनुचित ढंग अपनाते हैं में छात्रों में ऐसी भावना भर दूँगा कि वे नकल करें ही नहीं। यदि किसी ने ऐसा दुस्साहस किया तो उसकी इस प्रवृत्ति को दृढ़तापूर्वक दबा दूँगा। प्रभु मुझे सु-अवसर दे कि मैं प्रधानाचार्य बनकर अपने विद्यार्थियों और अपने विद्यालय की उन्नति कर सकूँ।

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