योग की आवश्यकता पर निबंध:- वास्तव में, योग मनुष्य (Importance of Yoga Essay in Hindi) को अनेक बीमारियों से तो मुक्त रखता ही है, साथ ही उनमें बेहतर सोच एवं सकारात्मक ऊर्जा भी पैदा करता है। यूँ भी आज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में विज्ञान की प्रगति के कारण मानव-जीवन जिस तरह मशीनों पर निर्भर रहने लगा है, उसके लिए शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना किसी चुनौती से कम नहीं। मशीनों पर निर्भरता एवं व्यस्तता के कारण आज मानव-शरीर तनाव, थकान, बीमारी, इत्यादि का घर बनता जा रहा है।
योग की आवश्यकता पर निबंध

हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ हासिल कर लीं, किन्तु उसके सामने शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने की चुनौती पूर्ववत् है। यद्यपि चिकित्सा एवं आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में मानव ने अत्यधिक प्रगति कर अनेक प्रकार की बीमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है, किन्तु इससे उसे पर्याप्त मानसिक शान्ति भी प्राप्त हो गई. ऐसा कहना पूर्णतः सही नहीं होगा।
किन्तु, भारतीय संस्कृति की एक प्राचीन विद्या ने मानव को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मन की शान्ति के सन्दर्भ में रोशनी की एक ऐसी किरण प्रदान की है, जिससे न केवल तनाव थकान, बीमारी एवं अन्य समस्याओं का समाधान सम्भव है बल्कि मानव मन को शान्ति प्रदान करने में भी उसकी भूमिका अहम है। और यह योग है।
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बीसवीं सदी में जब योग को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिलनी शुरू हुई, तो इस पर सम्पन्न अनेक वैज्ञानिक शोधों ने यह साबित कर दिया कि आधुनिक जीवन में मानव को शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रखने में योग ही सक्षम है।
योग, संस्कृत के यज् धातु से बना है, जिसका अर्थ है संचालित करना, सम्बद्ध करना, सम्मिलित करना अथवा जोड़ना । अर्थ के अनुसार विवेचन किया जाए तो शरीर एवं आत्मा का मिलन ही योग कहलाता है। यह भारत के छः दर्शनों, जिन्हें षड्दर्शन कहा जाता है, में से एक है। अन्य दर्शन हैं-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त एवं मीमांसा। इसकी उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 ई.पू. में हुई थी।
पहले यह विद्या गुरु-शिष्य परम्परा के तहत पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को हस्तान्तरित होती थी। लगभग 200 ई.पू. में महर्षि पतञ्जलि ने योग-दर्शन को योग सूत्र नामक ग्रन्थ के रूप में लिखित रूप में प्रस्तुत किया। इसलिए महर्षि पतञ्जलि को ‘योग का प्रणेता’ कहा जाता है। आज बाबा रामदेव ‘योग’ नामक इस अचूक विद्या का देश-विदेश में प्रचार कर रहे हैं।
बहरहाल, योगशास्त्र के अनुसार योग पाँच प्रकार के होते हैं-हठ योग, ध्यान योग, कर्म योग, भक्ति योग एवं ज्ञान योग। हठ योग का सम्बन्ध प्राण से, ध्यान योग का मन से, कर्म योग का क्रिया से, भक्ति योग का भावना से तथा ज्ञान योग का बुद्धि से है।
महर्षि पतञ्जलि ने योग-सूत्र में योग के आठ अंगों का वर्णन किया है। योग के ये आठ अंग हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि।
- यम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का पालन करना यम कहलाता है।
- नियम- स्वाध्याय, सन्तोष, तप, पवित्रता और ईश्वर के प्रति चिन्तन इत्यादि को नियम कहा जाता है।
- आसन- सुविधापूर्वक एकाग्रचित्त होकर स्थिर होने की क्रिया को आसन कहा जाता है। पतञ्जलि के योग-सूत्र के अनुसार आसनों की संख्या 84 है। जिनमें भुजंगासन, कोणासन, पद्मासन, मयूरासन, शलभासन, धनुरासन, गोमुखासन, सिंहासन, वज्रासन, स्वस्तिकासन, पर्वतासन, शवासन, हलासन, शीर्षासन, धनुरासन, ताडासन, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, चतुष्कोणासन, त्रिकोणासन, मत्स्यासन, गरुड़ासन इत्यादि कुछ प्रसिद्ध आसन हैं।
- प्राणायाम- श्वास एवं निःश्वास की गति को नियन्त्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ प्राण का विस्तार है। प्रत्याहार-इन्द्रियों को अपने भौतिक विषयों से हटाकर चित्त में रम जाने की क्रिया को प्रत्याहार कहा जाता है।
- धारणा- चित्त को किसी एक विचार में बाँध लेने की क्रिया को धारण या धारणा कहते हैं।
- ध्यान- मन जिस वस्तु में रमा हो उसी में इस प्रकार अपनी अन्तरात्मा को रमा देने की क्रिया जिसमें कोई भी बाह्य प्रभाव एकाग्रता को भंग न कर सके, ध्यान कहलाता है।
- समाधि- ध्येय वस्तु के ध्यान में जब साधक इस तरह डूब जाता है कि उसे अपने अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं रहता, तो ऐसी स्थिति को समाधि कहा जाता है।
योग के अंगों की व्याख्या से स्पष्ट है कि मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही योग का विकास किया गया था। यह हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। योग का उद्देश्य शरीर, मन एवं आत्मा के बीच सन्तुलन अर्थात् योग स्थापित करना होता है। योग की प्रक्रियाओं में जब तन, मन और आत्मा के बीच सन्तुलन एवं योग (जुड़ाव ) स्थापित होता है, तब आत्मिक सन्तुष्टि, शान्ति एवं चेतना का अनुभव होता है। योग शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखता है, साथ ही तनाव से भी छुटकारा दिलाता है।
यह शरीर के जोड़ों एवं मांसपेशियों में लचीलापन लाता है, मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है, शरीर में रक्त प्रवाह को सुचारु करता है तथा पाचन तन्त्र को मजबूत बनाता है। इन सबके अतिरिक्त यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्तियाँ बढ़ाता है, कई प्रकार की बीमारियों जैसे अनिद्रा, तनाव, थकान, उच्च रक्तचाप, चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को ऊर्जावान बनाता है।
योग से होने वाले मानसिक स्वास्थ्य के लाभ पर गौर करें, तो पता चलता है कि यह मन को शान्त एवं स्थिर रखता है, तनाव को दूर कर सोचने की क्षमता, आत्म-विश्वास तथा एकाग्रता को बढ़ाता है। इसलिए छात्रों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए योग विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है, क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ाता है जिससे उनके लिए अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
हर आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष योगाभ्यास कर सकते हैं, किन्तु योग की जटिलताओं को देखते हुए योग प्रशिक्षक का पर्याप्त अनुभवी होना आवश्यक है, अन्यथा इससे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। प्रगति के साथ आए प्रदूषण ने मानव का जीवन दूभर कर दिया है तथा उसके सामने स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएँ हैं तब ऐसी परिस्थिति में योग मानव के लिए अत्यन्त लाभकारी साबित हो रहा है।
यही कारण है कि इसने विश्व के बाजार में अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति दर्ज कराई है। आज हर कोई योग के नाम पर धन कमाने की इच्छा रखता है। पश्चिमी देशों में इसके प्रति आकर्षण को देखते हुए यह रोजगार का एक उत्तम जरिया बन चुका है। इन सबके बावजूद, आज की भाग-दौड़ की जिन्दगी में खुद को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाए रखने के लिए योग बेहद आवश्यक है। वर्तमान परिवेश में योग न सिर्फ हमारे लिए लाभकारी है, बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण के सन्दर्भ में इसकी सार्थकता और भी बढ़ गई है। योग की आवश्यकता पर निबंध से जुड़ी जानकारी।
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