योग क्या है? योग का महत्व क्या है?

योग क्या है:- ‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘यजु’ धातु से उद्भूत हुआ है, जिसका अर्थ युक्त करना, संयोग, जोड़ना तथा मिलना होता है। आत्मा से परमात्मा का मिलन ही योग है। तन, मन तथा चेतन आत्मा की समग्र ऊर्जा को परमात्मा में मिला देना ही योग है। सफलता एवं विफलता में तटस्थ रहते हुए समता में स्थिर रहना ही योग है। ‘योग जीवन के रूपान्तरण का विज्ञान है । योग सत्य को उद्घाटित करने का प्रयोग है। भविष्य की कल्पनाओं तथा अतीत की स्मृतियों को त्याग कर वर्तमान में जीने की कला है। सुख, आनन्दपूर्ण जीवन का दर्शन है। योग आन्तरिक प्रयोग पर आधारित है।

प्राचीन मनीषियों, ऋषि मुनियों ने नीरव, निर्जन अरण्य में वर्षों तक अपनी आत्मा की प्रयोगशाला में आत्मानुसंधानरत रहते हुए आन्तरिक अस्तित्व के इस महाविज्ञान ‘योग’ का आविष्कार, जनहित के लिये किया है। अन्तर्जगत के वैज्ञानिक ऋषि पतंजलि ने योग विज्ञान को सूत्रबद्ध कर वैज्ञानिक आधारशिला रखी।

योग क्या है

योग क्या है

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योग क्या है (Yoga Kya Hai)

‘समत्व योग उच्यते ‘ गीता की यह परिभाषा बड़ी उपयुक्त, सारगर्भित और हमारे विषय के अनुकूल है । वस्तुत: जहाँ समत्व है, सामंजस्य, लयबद्धता है, अदन्द्व है, वहाँ योग है इसके विपरीत जहाँ द्वन्द है, असन्तुलन है, असंगति है, संघर्ष है, विग्रह है, वहाँ रोग है, व्याधि है ।

योगी अपने आप से, शरीर और मन से प्राण-शक्ति और मनस शक्ति से, अपने चारों ओर की परिस्थितियों और वातावरण से और अंततः समिष्ट से समत्व स्थापित कर लेता है । गीता कहती है जो अपने को समिष्ट में एवं समिष्ट को अपने में देखता है, वही योगी है।

योग का महत्व

जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि प्राचीन परिभाषा के अनुसार योग का अर्थ है- जोड़ना । स्थूल एवं सूक्ष्म को जोड़ना, व्यक्त और अव्यक्त को जोड़ना । योग का सम्बन्ध मनुष्य की व्यक्तिगत चेतना एवं ब्रह्मांडीय चेतना के मिलन से होता है।

योगबल

‘नास्ति योगात्परं बलम्’ योग के बराबर कोई शक्ति नहीं है। महर्षि घेरण्ड ने योग को शक्ति के रूप में देखा है, जिसके माध्यम से मनुष्य जीवन की सभी कमियों को दूर कर सकता है। शक्ति इसलिये माना है कि उसके द्वारा शरीर, मन, बुद्धि, विचार, व्यवहार, जीवन-सबको अपने नियंत्रण में लाया जा सकता है । संयत और सन्तुलित बनाया जा सकता है। संभवत् दुनिया में ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जो शरीर और मन के विकास के लिये एक साथ कार्य करे

महर्षि घेरण्ड ने इसी कारण कहा है कि दुनिया में योग से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। इसके माध्यम से व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सकता है। शारीरिक रोग सरल तरीके से दूर किये जा सकते हैं। मानसिक स्तर का विकास किया जा सकता है

योग इस बात को स्वीकार नहीं करता कि मनुष्य अपने जीवन में प्रारब्ध के कारण कठिनाइयों का सामना करता है। योग कहता है कि यदि आपके भीतर पुरुषार्थ है, क्षमता है तो आप सभी अवस्थाओं में सुखी रह सकते हैं

अतः योग का दूसरा नाम ‘पुरुषार्थ’ भी है। जब हम कुछ प्राप्त करने के लिये प्रयास करते हैं, पुरुषार्थ करते हैं, तब वह साधना योग-साधना के रूप में परिणत होती है प्राप्ति की जो अवस्था है, उसे सम्बन्ध को जोड़ने की अवस्था कहा जा सकता है पुरुषार्थ एवं साधना मनुष्य की शक्तियाँ हैं ।

योग की शिक्षा गुरु होती है कि किस प्रकार हम अभ्यास के द्वारा योग शक्ति का प्रयोग करें ज्ञान को अपना साथी बनायें, पाप से मुक्त हों और अहंकार रूपी शत्रु को अपने से दूर ही रखें।

महर्षि घेरण्ड ने कहा है कि- ‘योगानलेन संदह्य घटशुद्धि समाचरेत ।’ योग-साधना से जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे योग का तेज या योग की अग्नि कहते हैं इस अग्नि के माध्यम से हम अपने शरीर के विकारों को दूर कर सकते हैं, शरीर को शुद्ध एवं मजबूत बनाते हैं, यह तो शारीरिक पक्ष है ।

हमें जब शारीरिक शुद्धता की अवस्था प्राप्त हो जाती है, तब मन भी शुद्ध बनता है क्योंकि योग यह नहीं मानता कि शरीर एवं मन दो भिन्न तत्व हैं। योग कहता है कि शरीर और मन के बीच घनिष्ट सम्बंध है। क्योंकि जब शरीर स्वस्थ होता है तो मन भी स्वस्थ रहता है। इसी प्रकार जब मन स्वस्थ होता है तो शरीर भी स्वस्थ रहता है इसीलिये, जब योग के द्वारा हम शरीर को विकार रहित शुद्ध कर लेते हैं तो मनः शुद्धि की अवस्था स्वतः प्राप्त होती है। इसके द्वारा हमें जीवन में रोगों से संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त होती है ।

प्राचीन काल एवं वर्तमान काल में योग

आज के युग में योग एक महत्वपूर्ण विषय माना जाने लगा है प्राचीन काल में योग केवल कुछ बहुत ही खास व्यक्तियों द्वारा किया जाता था। वास्तव में वे लोग उस संसार में रहने वाले व्यक्तियों से अलग हुआ करते थे, उनकी रुचि सांसारिक जीवन में नहीं रहती थी । अपितु, जीवन के सत्य मार्ग में सत्यों की खोज में रहती थी। योग का अध्ययन एवं अभ्यास के लिये व्यक्ति को संसार की उपलब्धियों, इच्छाओं तथा आनन्द आदि सबका त्याग करना पड़ता था ।

प्राचीन समय की योगाभ्यास की उस धारणा को अब वर्तमान में नया मोड़ मिला है। आज योग केवल कुछ विशेष लोगों तक ही सीमित नहीं रहा है, प्रत्युत योग प्रत्येक व्यक्ति के लिये रुचि का विषय बन गया है। अब योग एकान्त में सांसारिक जीवन से दूर अभ्यास करने के लिए नहीं रहा, संसार के प्रत्येक हिस्से में उसके महत्व को स्वीकारा जा रहा है।

वस्तुत: यह एक आश्चर्य की बात है कि इतने समय का योगाभ्यास आज के इस आधुनिक और मशीनी युग में इतना उपयोगी कैसे है ? इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि योग ही एक ऐसा साधन है जो इस युग की आधुनिकीकरण से उपजी समस्याओं का समाधान देता है। इस युग में व्यक्ति उन समस्याओं से घिरा है, जो बिल्कुल नई एवं शक्ति के द्वारा स्वयं ही उत्पन्न की गई है। योग इन समस्याओं को सुलझाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है। इसी कारण से इतना प्राचीन योग जिसका वर्णन वेदों, पुराणों, भग्वद्गीता, महाभारत आदि में मिलता है, अचानक इस युग में इतना प्रचलित हो रहा है ।

योग धर्म नहीं है, यह जीवन का दर्शन है जो कुछ दार्शनिक तथ्यों पर आधारित है और इसका उद्देश्य शरीर और मन के बीच सही सन्तुलन विकसित करना है इस युग में व्याधियों के उपचार के लिये योग का प्रयोग अधिक हो रहा है।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।